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सृजनात्मकता के विकास में अध्यापक की भूमिका | सृजनात्मकता का अर्थ , परिभाषाएँ

सृजनात्मकता का अर्थ , परिभाषाएँ 

Meaning and definitions of Creativity

किन्हीं व्यक्तियों में सृजनशीलता का गुण प्राकृतिक रूप से पाया जाता है । यह एक बहु अमूल्य निधि है जिस पर प्रगति, उन्नति तथा उत्थान निर्भर, करता है । सृजनशील व्यक्ति प्रत्येक युग एवं प्रत्येक काल में पाये जाते हैं । सृजनशीलता वैसे तो प्रत्येक प्राणी में पायी जाती है लेकिन मनुष्य में यह सर्वाधिक पायी जाती है क्योंकि मानव एक बुद्धिमान प्राणी माना गया है । प्रत्येक व्यक्ति में सृजनशीलता समान रूप से नहीं पायी जाती है, समान बुद्धि-लब्धि के व्यक्तियों में भी सृजनशीलता समान नहीं होती है।


वैज्ञानिक तथा तकनीकी उपलब्धियों को अधिकाधिक अर्जित करने के लिए विभिन्न क्षेत्रों में सृजनात्मक व्यक्तियों को खोजना एक राष्ट्रीय आवश्यकता बन गयी है । आज हमारी शिक्षा का उद्देश्य छात्र में सृजनात्मकता का विकास करना है ।

सृजनात्मकता का अर्थ (Meaning of Creativity)

सृजनात्मकता अंग्रेजी शब्द Creativity का हिन्दी रूपान्तर है । कुछ शिक्षाशास्त्री सृजनात्मकता का अर्थ उत्पादकता (Productivity) से लगाते हैं । सृजनात्मक सृजन शब्द से निकला है । सृजन शब्द जिससे किसी रचना का आभास होता है, जो पहले न बनी हो।

Creativity b.ed notes in Hindi

सृजनात्मकता की परिभाषाएँ

(Definitions of Creativity)

'क्रो और क्रो के अनुसार -“सृजनात्मकता मौलिक परिणामों को अभिव्यक्त करने की मानसिक प्रक्रिया है।


"Creativity is a mental process to express the original out comes." - Crow and Crow


जेम्स ड्रेवेर का कथन है -“सृजनात्मकता मुख्यतः नवीन रचना या उत्पादन में होती है।


"Creativity is essentially found in new constructions or productions." - James Drever


कोल और ब्रूस के विचार में -‘सृजनात्मकता एक मौलिक उत्पादन के रूप में मानव-मन की ग्रहण करने, अभिव्यक्त करने और गुणांकन करने की योग्यता एवं क्रिया है।

"Creativity is an ability and activity of man's mind to grasp, express and appreciate in the form of an original product." - Cole and Bruce


स्टीन के अनुसार -“सृजनात्मकता एक नवीन कार्य है जो किसी समय बिन्द्र पर एक समूह द्वारा तर्कसंगत या उपयोगी या सन्तोषजनक रूप से स्वीकृत हो।”


"Creativity is a novel work that is tenable or useful or satisfying by a group at some point in time" - Stein

सृजनात्मकता के क्षेत्र

सृजनात्मकता के विभिन्न क्षेत्र हो जाते हैं। मानव के व्यक्तित एवं सामाजिक जीवन के समस्त कार्य इस क्रिया की ही उत्पादनात्मकता के परिणाम हैं। सुजनात्मकता के क्षेत्र के अंतर्गत मानव का सम्पूर्ण जीवन आ जाता है। मनुष्य को हम वैज्ञानिक, कलाकार, चित्रकार, मूर्तिकार, साहित्यकार, कारीगर आदि विभिन्न रूपों में देखते हैं। वह सब उसके सृजनात्मक क्षेत्र के अंतर्गत आते हैं। विभिन्न विचारकों के अनुसार सृजनात्मकता के प्रमुख क्षेत्र निन्नलिखित हैं -


1. विज्ञान - इसके अन्तर्गत भौतिकी, रसायन, ओषधि-निर्माण आदि से सम्बन्धित हर प्रकार के आविष्कार एवं अनुसंधान आ जाते हैं।


2. कला-कौशल-संगीत, नृत्य, चित्रकला, वास्तुकला तथा धातु, काष्ठ, चर्म, कागज आदि से सम्बन्धित कौशल भी सृजनात्मकता के अंतर्गत आते हैं।


3. तकनीकी - इसमें विशेष रूप से मशीनों, उनके यंत्रों और पुर्जो आदि के निर्माण का क्षेत्र आ जाता है।

4. साहित्य - इसके अन्तर्गत कविता, कहानी, नाटक, उपन्यास, निबन्ध आदि की रचना तथा भाषणकला, लेखन-कला सम्मिलित है।


5. सामाजिक क्षेत्र - व्यक्ति को समाज में आपस में एक-दूसरे के सहयोग द्वारा अनेक प्रकार की सामाजिक क्रियाओं-धार्मिक, सांस्कृतिक, शैक्षिक, राजनैतिक आदि को सम्पादित करना पड़ता है और अनेक समस्याओं का समाधान करना पड़ता है। इन सभी अवसरों पर व्यक्ति अपनी सृजनात्मक शक्ति का प्रयोग करता है।


6. व्यक्तिगत क्षेत्र - व्यक्ति अपने व्यक्तिगत जीवन में किसी व्यवसाय, उद्योग या कार्य में लगा रहता है। वह सामाजिक, आर्थिक, राजनैतिक और शैक्षिक, प्रशासनिक जिस क्षेत्र में रहता है, अपनी सृजनात्मकता का प्रयोग करता है।


7. मानसिक प्रक्रियाओं का क्षेत्र - विभित्र मानसिक प्रक्रियाओं जैसे कल्पना, चिन्तन, तर्क, समस्या-समाधान और भावाभिव्यक्ति में सृजनात्मकता का प्रमुख भाग होता है।

सृजनात्मकता के विकास में अध्यापक की भूमिका

(Role of Teacher in the Development of Creativity in Hindi)

अध्यापक की भूमिका ऐसी होनी चाहिए कि वह विद्यार्थी को उसकी सृजनात्मकता की प्रवृत्ति की अभिव्यक्ति हेतु उपयुक्त माध्यम ढूंढूने में समुचित दिशा निर्देशन करें।


सृजनशीलता को विकसित करने के लिए गिलफोर्ड (Guilford), ऑस्बोर्न (Osborn) आदि मनोवैज्ञानिकों ने निम्नलिखित व्यावहारिक सूझाव दिये हैं


सृजनशीलता के प्रशिक्षण के लिए विभिन्न विद्वानों ने जो ढंग बताये हैं उनके आधार पर बालकों में सृजनात्मकता के विकास के लिए निम्नलिखित शौक्षिक प्रावधानों का वर्णन प्रस्तुत है -


1. बालकों में सृजनात्मकता का विकास करने के लिए शिक्षक को स्वयं भी सृजनात्मक प्रवृत्ति का होना चाहिए। उसे चाहिए कि वह स्वयं भी साहित्य, विज्ञान, कला आदि के क्षेत्र में सृजन-कार्य करे और छात्रों के समक्ष एक उदाहरण प्रस्तुत करे। इससे बालकों को प्रेरणा एवं प्रोत्साहन प्राप्त होता है।

2. अध्यापक का कर्तव्य है कि वह छात्रों को विभिन्न सृजनात्मक कार्यों को नवीनतम सूचनाओं को संग्रह करने का अवसर एवं सुविधा प्रदान करें। छात्रों को सुजनात्मक चिंतन के सिद्वान्तों को बतलाया जाये और किसी आविष्कार विशेष में सृजनात्मक अंशों की ओर संकेत किया जाए। 


3. छात्रों में नवीन विचारों को ग्रहण करने एवं उनका सम्मान करने की रुचि जाग्रत की जाये और उनको आत्म-विश्वास के विकास का अवसर दिया जाए। अध्यापक का कर्तव्य है कि छात्रों की रचना की प्रशंसा करें, स्वस्थ प्रतिस्पर्धा का विकास करें और सृजनात्मक कार्यों के अभ्यास का अवसर प्रदान करें।


4. कला-शिक्षण के समय छात्रों के समक्ष समस्यात्मक प्रश्न या परिस्थिति रखकर उनकी प्रतिक्रियाओं को आमंत्रित किया जाए और उनका उचित मूल्यांकन किया जाए।

5. शिक्षकों द्वारा ऐसा वातावरण प्रस्तुत किया जाये, जो प्रोत्साहित करने वाला और क्रियाशीलता एवं नम्यता की शिक्षा देने वाला हो।


6. उत्पादक चिन्तन और मूल्यांकन को प्रोत्साहन देना भी शिक्षक का कर्तव्य है।


7. जीवन के विभिन्न क्षेत्रों में जैसे सामाजिक, आर्थिक, राजनैतिक, वैज्ञानिक, तकनीकी और शैक्षिक आदि समस्याओं के समाधान की योजना प्रस्तुत करके छात्रों से हल कराने का प्रयत्न किया जाए।

8. सुधार, निर्माण खोज और आविष्कार की क्रियाओं में छात्रों को लगाया जाए। इससे उनमें सृजनात्मकता का विकास होगा।


9. सृजनात्मकता के विकास और प्रशिक्षण के लिए किसी कार्य में उनकी रूचि और प्रयास को बनाये रखना चाहिए और यथासंभव अभ्यास द्वारा उन्हें दृढ़ होने का असर देना चाहिए। दृढ़ीकरण हेतु उन्हें कभी-कभी वाचिक या वस्तुगत रूप से पुरस्कृत भी करना चाहिए।


10. अध्यापक को चाहिए कि वह छात्रों को विभिन्न स्रोतों से ज्ञान, कौशल एवं अन्य सूचनाएँ ग्रहण करने और संग्रह करने को प्रेरित करे। विभिन्न क्षेत्रों में महान अन्वेषकों की जीवन-गाथा से परिचित कराना भी छात्रों को सृजनात्मकता की प्रेरणा प्रदान करता है।

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