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किशोरावस्था की विशोषताएँं | CHARACTERISTICS OF ADOLESCENCE IN HINDI

किशोरावस्था की विशोषताएँं

CHARACTERISTICS OF ADOLESCENCE IN HINDI


किशोरावस्था में होने वाले शारीरिक, मानसिक, सामाजिक, संवेगात्मक तथा नैतिक विकास की प्रमुख विशेषताएँ निम्नलिखित हैं


1. शारीरिक विकास (Physical Development) - 

  • किशोरावस्था में आन्तरिक तथा बाहा शारीरिक परिवर्तन अत्यन्त महत्वपूर्ण होते हैं।
  • इस अवस्था में लड़कों की आवाज भारी होने लगती है, जबकि लड़कियों की मधुर।
  • उनके चलने-फिरने का अंदाज भी बदलने लगता है।
  • लड़कियाँ अपने शरीर के प्रति चैतन्य होने लगती हैं।
  • हड्डियों में लचीलापन कम होने लगता है, परिपक्वता आती है। मांसपेशियाँ दृढ़ हो जाती हैं।
  • लड़कों में पुरुषोचित और लडकियों में महिला सम्बन्धी विकास और परिवर्तन आता है।
  • आन्तरिक अंगों की वुद्धि और विकास भी तेजी से होता है।
  • मस्तिष्क, हृदय, श्वसन तथा पाचन अंगों का एवं स्नांयु तंत्र शारीरिक वृद्धि के परिप्रेक्ष में परिपक्व हो जाते हैं।
  • इस अवस्था में शारीरिक विकास उत्परिवर्तनीय (Saltory) तथा निरन्तरता (Continuous) के सिद्धान्त पर होता है।


2. मानसिक विकास (Mental Development) -

  • किशोर के मस्तिष्क का चतुर्दिक विकास होता है।
  • उसमें कल्पना एवं दिवा-स्वपनों बहुलता, बुद्धि का अधिकतम विकास, सोचने-विचारने एवं तर्क करने की शक्ति में वृद्धि तथा विरोधी मानसिक दशाओं आदि गुणों का विकास होता है।
  • कॉलेसनिक के अनुसार- “किशोर की मानसिक जिज्ञासा का विकास होता है।
  • अतः वह सामाजिक, आर्थिक, राजनीतिक और अन्तर्राष्ट्रीय समस्याओं में रूचि लेने लगता है।
  • वह इन समस्याओं के संबंध में अपने विचारों का निर्माण भी करता है।

 

3. घनिष्ठ व व्यक्तिगत मित्रता (Fast and Personal Friendship) -

किसी समूह का सदस्य होते हुए भी किशोर एक या दो बालकों से घनिष्ठ सम्बन्ध रखता है, जो उसके परम मित्र होते हैं तथा जिनसे वह अपनी समस्याओं के बारे में स्पष्ट रूप से बातचीत करता है।

वेलेन्टाइन के अनुसार- "घनिष्ठ और व्यक्तिगत मित्रता उत्तर किशोरावस्था की विशेषता है।


4. स्थायित्व एवं समायोजन का अभाव (Lack of Stability and Adjustment) -

इस समय किशोर की मनःस्थिति अस्थिर होती है।

रॉस ने किशोरावस्था को ‘ शैशवावस्था की पुनरावृत्ति' कहा है। इस समय उसमें इतनी तेजी से परिवर्तन होते हैं कि वह़ कभी कुछ विचार करता है और कभी कछ। उसकी मनोदशा अस्थिर होती है। परिणामस्वरूप वह अपने को पर्यावरण से समायोजित करने में असमर्थ होता है।

 

5. व्यवहार में विभिन्नता (Difference in Behaviour) -

  • किशोर में आवेगो और संवेगों में बडी प्रबलता होती है।
  • यही कारण है वह विभिन्न अवसरों पर विभिन्न प्रकार का व्यवहार करता है।
  • उदाहरणार्थ - किसी समय वह अत्यधिक क्रियाशील होता है और किसी समय अत्यधिक आलसी, किसी परिस्थिति में साधारण रूप से उत्साहपूर्ण और किसी में असाधारण रूप से उत्साहहीन।
  • बी. एन. झा ने लिखा है - हमारे सबके संवेगात्मक व्यवहार में कुछ विरोध होता है, पर किशोरावस्था में यह व्यवहार विशेष रूप से स्पष्ट होता है।”


6. बुद्धि का अधिकतम विकास (Maximum Development of Intelligence) -

किशोरावस्था में बुद्धि का विकास लगभग पूर्ण हो जाता है। मनोवैज्ञानिकों के अनुसार 16 वर्ष की आयु तक सामान्यत: बुद्धि में वृद्धि होती है।

पूर्ण बौद्धिक विकास के कारण उसमें ये क्षमताएँ आ जाती हैं- प्रत्ययों के आधार पर अमूर्त चिन्तन की क्षमता, तर्क करने तथा निर्णय लेने की क्षमता, ध्यान केन्द्रित करने की क्षमता, स्मृति-विस्तार की क्षमता तथा सर्जनात्मक कल्पना की क्षमता ।


7. रुचियों में परिवर्तन तथा स्थायित्व (Changes and Stability in Interest) -

  • इस अवस्था में रुचियाँ परिवर्तित होती रहती हैं।
  • किशोर अपने समूह या आस-पास या मीडिया से प्रभावित होकर अपनी रुचियाँ निर्धारित करने लगते हैं।
  • लड़के और लड़कियों की रुचियों में कुछ समानताएँ और कुछ विभिन्नताएँ पाई जाती हैं।
  • आजकल इस अवस्था के लड़के-लड़कियाँ सेल फोन तथा इण्टरनेट एवं कम्प्युटर के प्रति विशेष रुझान रखते हैं।
  • इस अवस्था में विषमलिंगी मित्रता का रुझान अधिक होता है।
  • लड़के-लडकियाँ एक साथ पर्यटन के लिए जाना या समाज-सेवा कार्य करना पसन्द करते है।
  • प्रोजेक्ट से सम्बन्धित कार्यो में किशोर-किशोरियाँ बहुत रुचि लेते हैं।
  • आत्म-सम्मान सम्बन्धित वस्तुओं और विचारों में रुचि अधिक होती है।
  • लड़के घर के बाहर के कार्यों में और लडकियोँ घर के अंदर के कार्यों में अधिक रुचि लेती हैं।

 

8. काम-भावना का विकास (Development of Sex Instincts) -

  • किशोरावस्था में काम-प्रवृत्ति क्रियाशील हो उठती है।
  • बाल्यावस्था में समलिंगीय प्रेम भावना किशोरावस्था में विषम-लिंगीय प्रेम में बदल जाती है।
  • इस अवस्था में लड़के-लड़कियों से सम्पर्क या सम्बन्ध स्थापित करने का प्रयास करते हैं तथा लड़कियाँ, लड़कों से बोलने, साथ घूमने तथा सम्पर्क स्थापित करने की इच्छा रखती हैं।


9. मानसिक स्वतंत्रता और विद्रोह की भावना (Mental Independence and Feeling or Revolt) -

  • किशोरावस्था में मानसिक स्वतंत्रता की भावना बहुत प्रबल होती है।
  • किशोर बड़ों के आदेशो, विभिन्न परम्पराओं, रीति-रिवाजों और अंधविश्वासों के बंधन में न रहकर स्वतंत्र रहना चाहता है।
  • वह बिना तर्क किए किसी बात को मानने को तैयार नहीं होता।
  • उसके ऊपर कोई नियन्त्रण या प्रतिबन्य लगाया जाता है तो वह उसका विरोध करता है।
  • कॉलेसनिक के अनुसार- ‘किशोर, प्रौढों को अपने मार्ग में बाधा समझता है जो उसे अपनी स्वतंत्रता का लक्ष्य प्राप्त करने से रोकते हैं।


10. कल्पना का बाहुल्य (Excuberance of Imagination) -

  • किशोर अत्यधिक कल्पनाशील होता है।
  • व्यावहारिक जीवन में किशोर अपनी सभी अभिलाषाओं को पूरा करने में अपने को असमर्थ पाता है।
  • फलस्वरूप वह अपनी इन अभिलाषाओं की पूर्ति वास्तविक जीवन में न करके कल्पना जगत में करने लगता है।
  • छोटी-छोटी बातों को लेकर वह कल्पना में डब जाता है।
  • कल्पना की प्रबलता के कारण इस आयु में दिवास्वप्प देखने की प्रवृत्ति होती है।
  • इस प्रवृत्ति की अधिकता के कारण वह आत्म केन्द्रित तथा अन्तर्मुखी हो जाता है।
  • इस प्रवृत्ति से कभी-कभी हानि भी होती है।
  • कुछ किशोरों में विरोधी भावनाएँ उत्पन्न हो जाती हैं, वे असामाजिक और अनैतिक व्यवहार करने लगते हैं।
  •  
  • प्रायः वे अपराधी बन जाते हैं। किन्तु कभी-कभी वे कल्पना और दिवास्वपनों के कारण साहित्य, संगीत और ललित कलाओं में सौन्दर्यात्मक और रचनात्मक-कल्पना शक्ति का प्रकाशन करते हैं।
  • वे कहानियाँं, नाटक लिखने तथा अभिनय करने में रुचि दिखाते हैं।
  • कल्पना प्रवृत्ति के उन्नयन द्वारा उनमें कलात्मक शक्ति का विकास होता है और वे कवि, कलाकार, कहानीकार, उपन्यासकार, नाटककार, चित्रकार या संगीतज्ञ बनाए जा सकते हैं।


11. समूह को महत्व (Importance to Group) -

  • किशोर जिस समूह का सदस्य होता है, उसको वह अपने परिवार और विद्यालय से अधिक महत्वपूर्ण समझता है।
  • यदि उसके माता-पिता और समूह के दृष्टिकोणो में अन्तर होता है, तो वह समूह के दृष्टिकोण को ही चुनता है और उन्हीं के अनुसार अपने व्यवहार, रुचियों, इच्छओं आदि में परिवर्तन करता है।
  • बिग एवं हण्ट का कथन है- "जिन समूहों से किशोरों का सम्बन्ध होता है, उनसे उनके लगभग सभी कार्य प्रभावित होते हैं।
  • समूह उनकी भाषा, नैतिक मूल्यों, वस्त्र पहनने की आदतों और भोजन की विधियों को प्रभावित करते हैं।


12. परमार्थ की भावना (Altruism) -

  • शैशवावस्था की स्वार्थ-भावना, किशोरावस्था में परमार्थ भावना अर्थात् दूसरों का उपकार करने की भावना का रूप ले लेती है।
  • इस समय किशोर में त्याग और बलिदान की भावना प्रबल दिखाई देती है।
  • वह देश और समाज के लिए अपने प्राणो को उत्सर्ग करने में भी संकोच नहीं करता है।
  • इस समय उनमें अदम्य उत्साह और साहस होता है जो कि परमार्थ भावना को जन्म देती है।

 

13. आत्म-सम्मान की भावना (Feeling of Self-respect) -

  • किशोर और किशोरियाँ आत्म-सम्मान के प्रति सजग रहते हैं।
  • छोटी-छोटी बातों में वे अपने को अपमानित और तिरस्कृत समझने लगते हैं।
  • आत्म-सम्मान को ठेस लगने के कारण ही किशोरों में घर से भागने की प्रवृत्ति उत्पन्न हो जाती है।


14. धार्मिक भावना (Religious Feelings) -

  • किशोरावस्था में धार्मिक भावना बडी प्रबलता से विकसित होती है।
  • वह अपनी सफलता या असफलता का कारण ईश्वर की मर्जी मानता है।
  • अक्सर देखा जाता है कि परीक्षा में जाने से पूर्व किशोर-किशोरियाँ धार्मिक कृत्य करना, मंदिर आदि अवश्य जाना चाहते हैं।
  • धार्मिक आदर्शो के प्रति किशोरों के मन में स्थायी भाव बन जाते हैं।

 

15. वीर पूजा (Hero Worship) -

इस अवस्था में वीर पूजा की प्रवृत्ति बहुत प्रबल हो जाती है। किशोर-किशोरियाँ इतिहास, फिल्म, पत्र-पत्रिकाओं आदि के किसी चरित्र से प्रभावित होकर जैसा ही आचरण करने का प्रयास करते हैं, वैसी ही मनोवृत्ति विकसित कर लेते हैं। यहाँ तक कि उनके अन्दर अपने आदर्शो को ईश्वर-तुल्य मानने की प्रवृत्ति विकसित हो जाती है।


16. व्यवसाय चुनाव की चिन्ता (Anxiety for Vacational Selection) -

इस अवस्था में ही किशोर अपने भावी व्यवसाय चुनने की चिन्ता करने लगता है। वह एक कुशल डॉक्टर, इंजीनियर, वकील, अध्यापक, कलाकार या सफल किसान बनकर जीवन व्यतीत करने की कल्पना और चिन्ता किया करता है तथा व्यवसाय के अनुसार ही पाठ्य-विषयों का चुनाव भी करता है।


उपर्युक्त विवेचन के उपरान्त हम इस निष्कर्ष पर पहुँचते हैं कि किशोरावस्था में बालक की अनेक नवीन विशेषताएँ दिखाई देती हैं।

इस संबंध में स्टेनली हॉल का कहना है - ‘किशोरावस्था एक नया जन्म है, क्योंकि इसी में उच्चतर एवं श्रेष्ठतर मानव विशेषताओं के दर्शन होते हैं।"

"Adolescence is a new birth, for the higher and more completely human traits are new born. - Stanley Hall


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