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Meaning and definition of textbook b.ed notes | Importance of textbook b.ed notes

Meaning and definition of textbook b.ed notes
पाठ्य-पुस्तक की परिभाषा और अर्थ 


पाठ्य-पुस्तकें
TEXT- BOOKS


"The Text-Book must be regarded as strictly subordinate and supplementary to the teacher's lessons." - T. Raymount


"Text-Book is half of the apparatus of teaching." - Prof. Keating


प्राचीन काल में ज्ञान देने का केवल एक मौखिक (Oral) तरीका था अथवा गुरु अपने आश्रम में बालकों को उपदेश देते थे।

परन्तु वर्तमान में जीवन के हर एक क्षेत्र में ज्ञान का विस्तार हो रहा है। इसीलिए किसी भी विषय का क्रमबद्ध व नया ज्ञान अर्जित करने के लिये पाठ्य-पुस्तक बहुत जरूरी है।

पाठ्य-पुस्तक शिक्षण प्रक्रिया में अध्यापक व छात्र दोनों का ही पथ प्रदर्शन करती है। कहा भी गया है कि 'जैसी पाठ्य-पुस्तक होगी, वैसा ही शिक्षण भी होगा" (As the text-book is, so will be your teaching)।

पाठ्य-पुस्तक की मदद से अध्यापक कक्षा में शिक्षण-अधिगम की अनुकुल परिस्थितियों व विद्यार्थियों के व्यवहारों में अपेक्षित बदलाव करने हेतु अपने शिक्षण की समुचित रूपरेखा बना सकता है। सौभाग्य से आधुनिक मशीनरीकाल ने पाठ्य-पुस्तक की सुविधा मानव को दे दी है।

 

कोठारी कमीशन के शब्दों में "यह बड़े ही दुर्भाग्य की बात है कि विज्ञान और शिल्प विज्ञान की पूर्व स्नातक स्तर की अधिकांश उत्कृष्ट पुस्तकें विदेशों से मँगानी पड़ती हैं। सभी बाहर से मँगाई गई पुस्तके उत्कृष्ट नहीं होतीं । विज्ञान और शिल्प विज्ञान की पुस्तकों को बड़े पैमाने पर आयात करने से केवल अधिक धन और विदेशी मुद्रा ही खर्च नहीं होती वरन् इससे हमारे बौद्धिक साहस को भी हानि पहुँचती है। उत्तम पुस्तकों की रचना के लिये आवश्यक योग्यता और अन्य साधन तो देश में उपलब्ध हैं पर सम्भवतः जिस चीज की कमी है, वह है दृढ़ संकल्प एवं योजनाबद्ध प्रयास।'


"A large scaling import of Text-Books in Science and Technology is not only expensive but also it is bad for our intellectual morale." - Kothari Commission


सर्वपल्ली डॉ. राधाकृष्णन (Dr. Radha Krishnan) ने भी कहा है कि ज्ञान किसी की बपौती नहीं है, उसका माध्यम केवल पुस्तक है।


पाठ्य-पुस्तकों का महत्व
(IMPORTANCE OF TEXT-BOOKS)

 

"The right use of Text-Book is a point of great practical importance in the art of teaching." - T.Raymount


पाठ्य-पुस्तक के महत्व के सम्बन्ध में ए.सुजेलो का निम्न कथन अक्षरशः सही है


"शिक्षक के अस्त्रों में पाठ्य-पुस्तक सबसे अधिक महत्पूर्ण है। यह तथ्य कि पाठ्य-पुस्तकें शिक्षक को पाठन सामग्री तथा निर्देशन दोनों ही देती हैं, खतरनाक है।"


"The Text-Book is the most important of the teacher's tool. The very fact, that the Text-Books are meant to provide both teaching material and guidance for the teacher is dangerous." - A. Suzzelo


क्रो एण्ड क्रो ने लिखा है कि 'न तो मात्र पुस्तक और न ही अध्यापक शिक्षा का सर्वत्तम साधन बन सकते हैं। अगर हम चाहते हैं कि हमारे भावी युवक अपनी जिम्मेदारियों को ठीक से निर्वाह करने में दक्षता प्राप्त कर लें तो हमें एक उत्कृष्ट पाठ्य-पुस्तक एवं एक सुप्रशिक्षित अध्यापक दोनों को अपनाना होगा ।


"Neither the books nor the teacher alone constitutes the best medium for education. A combination of well-choosen Text-Book and a well-trained teacher is needed, if young people are to be trained to meet out their future responsibilities." - Crow and Crow



पाठ्य-पुस्तक के प्रमुख लाभ (Merits of Text-Books) -

 

1. पाठ्य-पुस्तक में तार्किक व मनोवैज्ञानिक क्रम में उपलब्ध व्यवस्थित सामग्री से अध्यापक को अपने शिक्षण को प्रभावशाली बनाने में बहुत मदद मिलती है।


2. पाठ्य-पुस्तक के उपयोग से अध्यापक का कार्य अधिक आसान हो जाता है, क्योंकि उसे तैयार अभ्यास मालाएँ (Ready-made Exercises) सरलता से प्राप्त हो जाती हैं।


3. पाठ्य-पुस्तक अध्यापक तथा विद्यार्थी के प्रश्न लिखने-लिखाने की प्रक्रिया में बेकार जाने वाले समय को बचाती है।


4. पाठ्य-पुस्तक में विषय-सामग्री को बच्चों के मानसिक विकास व विषय के महत्व को ध्यान में रखते हुए क्रम दिया जाता है जो बच्चों हेतु मनोरंजन की वजह बन जाता है।


5. पाठ्य-पुस्तक अध्यापक के सामने समस्त पाठ्यक्रम का ढाँचा रखकर उसे उसके उदेश्यों से परिचित कराती है।


6. पाठ्य-पुस्तक के उपयोग से छात्र में स्व-शिक्षा का दृष्टिकोण उत्पन्न किया जा सकता है। इसके साथ ही विद्यार्थी में आत्म-विश्वास व पढ़ने के प्रति उचित दृष्टिकोण का भी विकास होता है।


7. इनके उपयोग से छात्र अपने पाठ की पुनरावृत्ति कर सकते हैं एवं कक्षा कार्य व गृहकार्य कर सकते हैं।

 

8. पाठ्य-पुस्तक शिक्षक तथा छात्र दोनों के लिये मार्गदर्शक का काम करती है।


9. " अभ्यास सफलता की जननी है।" (Practice Makes a man perfect.), इस कथन के अनुरूप विज्ञान में पर्याप्त अभ्यास की जरूरत को पाठ्य-पुस्तक के उपयोग से ही पूर्ण किया जा सकता है।


पाठ्य-पुस्तक से हानियाँ (De-merits of Text Book) -


1. नए परिवर्तनों व खोजों के बारे में पाठ्य-पुस्तक शान्त रहती है।


2. पुस्तक सहायक सामग्री है, अध्यापक की दासी है, स्वामिनी नहीं।

"Text-Book may be considered as a best servant but should not be supposed as a master."


3. पाठ्य-पुस्तक में सही चित्र, रेखाचित्र, आँकड़े, ग्राफ आदि की सर्वथा कमी रहती है।


4. शिक्षण-प्रक्रिया सीमित हो जाती है। अध्यापक पाठ्य-पुस्तक में समाहित सामग्री के अलावा कुछ नहीं बताना चाहता।


5. पाठ्य-पुस्तक में व्यवस्थित सामग्री तार्किक (Logical) व मनौवैज्ञानिक (Psychological) क्रम से प्रस्तुत नहीं की जाती।

 

6. पाठ्य-पुस्तक का मूल्य ज्यादा रखा जाता है जो कि साधारण विद्यार्थी की पहँच से बाहर होता है।


7. एक बार लिखी गई पुस्तके पुनः कठिनता से ही संशोधित (Revised) हो पाती हैं। 



DEFECTS IN THE EXISTING TEXT-BOOKS)
प्रचलित पाठ्य-पुस्तकों के दोष


भारत में पाठ्य-पुस्तकों की सामान्य दशा अन्य देशों की तुलना में अत्यधिक सोचनीय है। लगभग सम्पूर्ण विषयों की पुस्तके अपेक्षित स्तर से अधिक नीचे हैं। संक्षेप में वर्तमान पाठ्य-पुस्तकों के कुछ मुख्य दोष निम्नलिखित हैं


1. प्रकाशकों की मनमानी (Irregularities on the Part of Publishers) - अधिकतर प्रकाशक धन की जिज्ञासा को पूर्ण करने के उदेश्य से ही पाठ्य-पुस्तकों को छापते हैं। उनकी पाठ्य-पुस्तक को उत्तम बनाने में कोई इच्छा नहीं होती । वे मात्र ऐसे लेखकों को प्रोत्साहित करते हैं जो सस्ती व प्रश्नोत्तर रूप में पुस्तकें लिख सकें और धन प्राप्त कराने में उनको मदद दे सकें। किसी अच्छे लेखक की पुस्तक अथवा उच्च कोटि की पाठ्य-पुस्तक छापने को वे आसानी से तैयार नहीं होते । दुर्भाग्यवश आज का विद्यार्थी भी कम-से-कम अध्ययन में ज्यादा-से-ज्यादा अंक हासिल करना चाहता है और इन्हीं पाठ्य-पुस्तकों को अपने अध्ययन का आधार बनाकर चलता है। यह अत्यधिक निन्दनीय दशा है।


2. अशिक्षक लेखक (Non-Teacher Authors) - हमारे देश में ऐसे लेखक भी विद्यमान हैं। जिनका उस विषय अथवा शिक्षण से कोई सम्बन्ध नहीं होता किन्तु वे पुस्तकें प्रत्येक विषय पर लिखने को तैयार रहते हैं। इस श्रेणी में विद्वान एवं अपने विषय के अच्छे विख्यात लेखक भी हैं, परन्तु यह दुर्भाग्यपूर्ण बात है कि अधिकतर लेखक जो शिक्षक नहीं हैं वे पेशे के रूप में पाठ्य-पुस्तके लिखते हैं। उनकी विद्वता का को प्रश्न ही नहीं उठता। इस तरह के लेखकों के माध्यम से लिखी गई पाठ्य-पुस्तकें विद्यार्थी के सीखने की वास्तविक प्रक्रियाओं की अवहेलना करती हैं।उनकी विषय-सामग्री की शुद्धता व यथार्थता सदैव सन्देहजनक बनी रहती है।

 

3. पाठ्य-पुस्तकों की वस्तुनिष्ठ समीक्षा का अभाव (Lack of Objetive Criticism) - यदि सरकार ने माध्यमिक स्तर पर पाठ्य-पुस्तकों की निष्पक्ष व वस्तुनिष्ठ तरीके से समीक्षा करने की व्यवस्था की है परन्तु भाँति-भाँति की सिफारिशें एवं बाजारू ढंग इस व्यवस्था पर इतने हावी हो चुके हैं कि सरकार के सारे प्रयत्न पंगु होकर रह गये हैं। इसी आधार पर हमें इस आलोचना को सहन करना पड़ता है कि किसी राज्य विशेष में ही नहीं बल्कि सम्पूर्ण देश में ही उपयोगी व उचित पाठ्य-पुस्तकों का सुलभ होना कठिन है।


4. पुस्तकों का बाह्य रूप (Get-up of Text-Books) - हमारे यहाँ अधिकतर पाठ्य-पुस्तकों में उपयोग होने वाला कागज, छपाई, फॉरमेट व गेट-अप सन्तोषजनक नहीं होता है। विदेशी पाठ्य-पुस्तकों की तुलना में छपाई, कागज व मुद्रण का स्तर पर्याप्त निम्न कोटि का होता है। अगर बालक को एक वर्ष भी पाठ्य-पुस्तक का उपयोग करना पड़ जाये तो पुस्तक का आवरण व उसके पृष्ठ इत्यादि जीर्ण-शीर्ण स्थिति में पहुँच जाते हैं । बालकों के लिये कटी हुई पुस्तकों का उपयोग करना अमनोवैज्ञानिक है। हमारे यहाँ पुस्तकों के आवरण व मुख-पृष्ठ आकर्षक तथा विचारोत्तेजक नहीं होते हैं।


5. वैज्ञानिक पुट का अभाव (Lack of Scientific Touch) - हमारे देश में पाठ्य-पुस्तकें बिना आरंभिक उपयोग के लिखी जाती हैं तथा प्रकाशित हो जाती हैं। एक अच्छी पाठ्य-पुस्तक वह है जिसमें अनुभवजन्य प्रमाणो के आधार पर अपेक्षित सुधार व बदलाव हुए हों। जिस तरह एक स्वर्णकार सोने को शुद्ध करता है उसी तरह पाठ्य-पुस्तकों के लेखकों को भी चाहिए कि वे विषय सम्बन्धी ज्ञान को कक्षा में उपयोग करके उसके प्रस्तुतीकरण के ढंगों, विषय के क्रमों व आपसी सम्बन्धों को एक वांछित रुप प्रदान करें।



पाठ्य-पुस्तकों का चयन
(SELECTION OF TEXT-BOOKS)

 

पाठ्य-पुस्तकों का चयन एक कठिन समस्या है। पाठय-पुस्तकों को निर्धारित करने से पहले उनका मूल्यांकन भली-भाँति कर लेना चाहिए। एक सुनिश्चित मापदण्ड के अभाव में मूल्यांकन करना कठिन होता है। इस सम्बन्ध में NCERT वैज्ञानिक तरीके से काम कर रही है और पाठ्य-पुस्तकों के चुनाव हेतु अपेक्षित मापदण्ड तय किये जा रहे हैं।


हमें पाठव्य-पुस्तकों के चुनाव में निम्नवत बातों पर विशेषतः ध्यान दिया जाना चाहिए-


(क) पाठ्य-पुस्तक का मनोवैज्ञानिक पहलू (Psychological Aspect of Text-Book)


(ख) पाठ्य-पुस्तक का तार्किक पहलू (Logical Aspect of Text-Book)।


मनोवैज्ञानिक पहलू (Psychological Aspect)


पाठ्य-पुस्तक बनाते समय एवं विषय-सामग्री को व्यवस्थित करते समय मनोवैज्ञानिक पहलू के अन्तर्गत निम्नवत् बातों को ध्यान में रखना चाहिए-


1. भाषा सरल, शुद्ध, प्रवाहमय व बोधगम्य हो।

2. विषय-वस्तु बालकों की मानसिक योग्यता, रुचि तथा विकास की अवस्था के अनुकूल होनी चाहिए।

3. पाठ्य-पुस्तक का मुख-पृष्ठ, आवरण व गेट-अप इत्यादि सुन्दर होने चाहिए।

4. पाठ्य-पुस्तक का मूल्य अत्यधिक नहीं होना चाहिए।

5. प्रयुक्त चित्र, रेखाचित्र व अन्य प्रदर्शनात्मक सामग्री बालकों के अनुभवों तथा स्थानीय (Local) जीवन के समीप होनी चाहिए।

6. पाठ्य-पुस्तक आधुनिक विज्ञान (Modern Science) को ध्यान में रखकर लिखी गई हो।

7. कई उप-विषयों को 'सरल से कठिन' की तरफ वाले शिक्षण सूत्र के अनुसार क्रमबद्ध करना चाहिए।


तार्किक पहलू (Logical Aspect)

 

पाठ्य-पुस्तक बनाते समय तथा विषय सामग्री को व्यवस्थित करते समय तार्किक पहलू के अन्तर्गत निम्नलिखित बातें ध्यान में रखनी चाहिए-


1. पाठ्य-पुस्तक में वर्णित विचारों की पुष्टि विश्वसनीय सन्दर्भो (Reliable references) के माध्यम से करनी चाहिए।

2. चित्रों, आँकड़ो, तालिकाओं व ग्राफों को यथास्थान रखा जाये और इनका समुचित वर्णन भी प्रदर्शित किया जाये।

3. कई अध्यायों (Chapters) का क्रमिक रूप से आयोजन किया जाना चाहिए।

4. हर एक अध्याय के साथ अतिरिक्त अध्ययन के लिए सम्बन्धित साहित्य की सूची दी जानी चाहिए।

5. पाठ्य-पुस्तक में विषय-वस्तु का तार्किक तरीके से व्यवस्थित होना जरूरी है।

6. स्पून फीडिंग (Spoon-feeding) से बचने हेतु पाठ्य-पुस्तक में अत्यधिक सोल्वड उदाहरणों को समावेशित नहीं करना चाहिये।

7. विषय का प्रतिपादन (Treatment of the Subject) ठोस, निश्चित और सुसंगत हो।

8. प्रतिभाशाली छात्रो हेतु कुछ जटिल प्रश्नों का समावेश एक अच्छी पाठय-पुस्तक की विशेषता है।

9. कई परिभाषाऐं स्पष्ट व निश्चित शब्दों में होनी चाहिए।

10. अभ्यासार्थ प्रश्नों की सूची हर एक पाठ के अन्त में होनी चाहिये।

11. पाठ्य-वस्तु (Content) की दृष्टि से पाठ्य-पुस्तक आधुनिक (up-to-date) होनी चाहिये।

12. पाठ्य-पुस्तक हर एक विद्यार्थी को सुलभता से उपलब्ध हो जानी चाहिये।

13. लेखक की योग्यता और अनुभव उच्च स्तर का होना चाहिये।

14. पाठ्य-पुस्तक का चयन किसी पक्षपात अथवा सिफारिश के आधार पर न करके उसकी गुणवत्ता के आधार पर किया जाना चाहिये।

15. पाठय-पुस्तक लिखते समय अनेक कमेटियों के सुझावों को भी महत्त्व दिया जाना चाहिये।


पाठ्य-पुस्तकों के मूल्यांकन हेतु मानदण्ड
(CRITERIA FOR EVALUATION OF TEXT-BOOKS)

 

पाठ्य-पुस्तकों का चयन करने से पहले यह जरूरी है कि उनका मूल्यांकन वस्तुनिष्ठ मानदण्डों के आधार पर किया जाये। कभी-कभी अध्यापक अथवा विद्यार्थी कुछ पक्षपातों या व्यक्तिगत कारणों से किसी पाठ्य-पुस्तक की गलत आलोचना या निन्दा करने लगते हैं, यह सही नहीं है। पाठ्य-पुस्तकों का मूल्यांकन करने हेतु निम्न व्यक्तियों की सम्मतियाँ पाना जरूरी है।


1. विषय के अनुभवी तथा कुशल शिक्षकों की सम्मति।

2. विषय के मेधावी विद्यार्थियों की सम्मति।

3. विषय से सम्बन्धित किसी विद्वान की सम्मति।

4. विषय विशेषज्ञ (Subject Expert) की सम्मति।


इसके अलावा, पाठ्य-पुस्तक का मूल्यांकन करने हेतु निम्नलिखित मानदण्ड (Criteria) का उपयोग किया जा सकता है।


1. पाठ्य-पुस्तक की व्यवस्था (Organization) - इस मानदण्ड के अनुसार पाठ्य-पुस्तक के अन्दर विषय का विभाजन, उसकी श्रृंखला- बध्वता, तार्किकता, सारांश व अभ्यासार्थ प्रश्नों की व्यवस्था पर बल दिया जाता है।


2. पुस्तक का यान्त्रिक पहलू (Mechanical Aspect) - इसके अन्तर्गत पाठ्य-पुस्तक का बाहरी स्वरूप, आकार, पृष्ठ संख्या, जिल्द, कागज की किस्म, छपाई की स्पष्टता, सज-धज इत्यादि शामिल हैं।


3. उदाहरण (llustations) - इसके अन्तर्गत मानचित्रो, चार्ट, रेखाचित्र, ग्राफ इत्यादि की शुद्धता स्पष्टता, उपयोगिता, वस्तुनिष्ठता, यथास्थानता, वास्तविकता, उपयुक्ता, रोचकता व आकार इत्यादि पर विचार किया जाता है। ये पाठ्य-पुस्तक हेतु अत्यधिक महत्वपूर्ण हैं।


4. अभ्यासार्थ प्रश्न Exercises) - हर एक पाठ के अन्त में दिये गये अभ्यासार्थ प्रश्नों का विषय-वस्तु से सम्बन्ध, उनकी व्यापकता, प्रेरणात्मक शक्ति, शुद्धता, विश्वसनीयता, स्पष्टता व कठिनाई स्तर निर्धारित करना जरूरी है। इस मानदण्ड के अनुसार अभ्यासार्थ प्रश्नों का मूल्यांकन इन्हीं दृष्टियों से होता है।

 

5. प्रस्तुतीकरण (Presentation) - इसके अन्तर्गत पाठ्य-पुस्तक की भाषा-शैली, उसमें प्रयुक्त शब्दावली, प्रतिपादन पद्धति, विषय की स्पष्टता व बोधग्राह्यता इत्यादि शामिल हैं।


6. अनुक्रमणिका या विषय-सूची (Index or Table of Contents) - इसके अन्तर्गत पाठ्य-पुस्तक के भीतर दी हुई विषय-सूची की पूर्णता, व्यवस्था, स्पष्टता, व्यावहारिक उपयोगिता व संगठन इत्यादि पर ध्यान दिया जाता है।


7. सहायक ग्रन्थों की सूची (References or Bibliography) - पाठ्य-पुस्तक में प्रयुक्त सहायक ग्रन्थों की सूची व निर्देशन की छात्रों एवं शिक्षकों की दृष्टि से उपयोगिता, उसकी व्यावहारिकता, उपलब्धता, निश्चितता, विश्वसनीयता तथा वैधता पर विचार करना बहुत जरूरी है। इस मानदण्ड के अन्तर्गत मूल्यांकनकर्ता इन सारी बातों पर विचार करता है।


8. लेखक (Author) - इसके अन्तर्गत लेखक की योग्यता, लेखन व शिक्षण-अनुभव, व्यावसायिक प्रशिक्षण एवं वर्तमान व्यवसाय इत्यादि पर विचार करना होता है। यह पाठ्य-पुस्तक के मूल्यांकन का महत्पूर्ण पक्ष है।



पाठ्य-पुस्तकों में सुधार के लिए कोठारी आयोग के सुझाव
(RECOMMENDATION OF KOTHARI COMMISSION REGARDING IMPROVEMENT IN TEXTBOOKS)


कोठारी आयोग (Kothari Commission) ने पाठ्य-पुस्तकों के निम्न स्तर को ऊँचा उठाने हेतु विभिन्न सुझाव प्रस्तुत किये हैं, जो निम्नवत हैं।


राष्ट्रीय स्तर पर सुझाव (Recommendations at National Level)


इस आयोग के माध्यम से राष्ट्रीय स्तर पर दिये गये प्रमुख सुझाव निम्नवत् हैं।

 

1. भारत सरकार प्रतिभाशाली व्यक्तियों को उदार पारिश्रमिक प्रदान कर पाठ्य-पुस्तक लिखने हेतु प्रोत्साहन दे।


2. सार्वजनिक क्षेत्र में शिक्षा मन्त्रालय एक स्वायत्त संगठन (Autonomous Organisation) स्थापित करे। यह संगठन राष्ट्रीय स्तर पर पाठ्य-पुस्तक के निर्माण कार्य को सम्पन्न करे।


3. पाठ्य-पुस्तक लिखने का कार्यक्रम राष्ट्रीय स्तर पर बनाया जाना चाहिये।


राज्य स्तर पर सुझाव (Recommendations at State Level)


इस आयोग के माध्यम से राज्य स्तर पर दिये गये प्रमुख सुझाव निम्नवत् हैं


1. पाठ्य-पुस्तक का मूल्यांकन करना प्रदेशीय शिक्षा विभाग का उत्तरदायित्व होना चाहिये।


2. प्रत्येक प्रदेश में एक भिन्न संस्था स्थापित होनी चाहिये। इस संस्था को पाठ्य-पुस्तक का निर्माण, पाठ्यक्रम की रचना, उसका समय-समय पर पुनरावलोकन व प्रकाशन इत्यादि की व्यवस्था करके हर एक पाँच वर्ष के बाद उनका परिशोधन (Revision) भी कर देना चाहिये।


3. शिक्षा विभाग को कुछ अच्छे लेखकों का चुनाव करके उनसे पांडुलिपियाँ व प्रस्ताव आमन्त्रित करने चाहिये।


4. कॉलेजों में अच्छी पुस्तकों के लेखकों को नियुक्त करना चाहिये।


5. प्रदेशीय सरकारों को पाठ्य-पुस्तक निर्माण का काम लाभ जुटाने की भावना से नहीं करना चाहिये। इस महान कार्य का उद्देश्य कम मूल्य पर अच्छी पाठ्य-पुस्तक प्राप्त कराना होना चाहिये।

 

6. पाठ्य पुस्तक में उन तथ्यों, घटनाओं की चर्चा नहीं करनी चाहिये जिससे किसी वर्ग, जाति या धर्म के व्यक्तियों की भावनाओं को ठेस पहुँचने का डर हो।


7. बिक्री का कार्य विभाग को नहीं अपितु सहकारी स्टोर्स (Co-operative Stores) को प्रदान करना चाहिये।


8. शिक्षकों को पाठ्य-पुस्तक लिखने हेतु विशेष प्रोत्साहन प्राप्त होना चाहिए।


9. पाठ्य-पुस्तक द्वारा बालकों में राष्ट्रीय प्रेम की भावना का विकास होना चाहिए ।

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