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शिक्षण में श्रव्य व दृश्य सामग्री AUDIO AND VISUAL AIDS IN TEACHING

Understanding Discipline and School Subjects b.ed notes in hindi


शिक्षण में सहायक श्रव्य व दृश्य सामग्री
[AUDIO AND VISUAL AIDS USEFUL IN TEACHING]


अर्थ एवं परिभाषा
(MEANING AND DEFINITIONS)


पाठ को रोचक एवं सुबोध बनाने के लिए यह आवश्यक है कि छात्रों की शिक्षा का सम्बन्ध उनकी अधिकाधिक ज्ञानेन्द्रियों के साथ हो।

इसी उद्देश्य को ध्यान में रखते हुए आजकल शिक्षण में सहायक सामग्री का प्रयोग प्रचुर मात्रा में किया जा रहा है। इससे सैद्धान्तिक, मौखिक एवं नीरस पाठों को सहायक उपकरणों के प्रयोग से अधिक स्वाभाविक, मनोरंजक तथा उपयोगी बनाया जा सकता है।

वास्तव में यह सच है कि सहायक सामग्री का उद्देश्य श्रवण एवं दृष्टि की ज्ञानेन्द्रियों को सक्रिय बनाकर ज्ञान ग्रहण करने के मार्ग खोल देता है।


यद्यपि अध्यापक स्वयं भी एक श्रेष्ठ दृश्य सामग्री है क्योंकि वह विषय को सरल बनाता है। भली-भाँति समझाने का प्रयत्न करता है, फिर भी वह स्वयं में पूर्ण नहीं है।

 

अतः सहायक सामग्री का प्रयोग उसके लिए वांछनीय ही नहीं, वरन अनिवार्य भी है । श्रव्य-दृश्य सामग्री, “वे साधन हैं, जिन्हें हम आँखों से देख सकते हैं, कानों से उनसे संबंधित ध्वनि सुन सकते हैं। वे प्रक्रियाएँ जिनमें श्रव्य व दृश्य इन्द्रियाँ सक्रिय होकर भाग लेती हैं, श्रव्य-दृश्य साधन कहलाती हैं।


श्रव्य व दृश्य सामग्री की परिभाषा विभिन्न विद्धानों ने निम्न प्रकार से की है -


(1) “श्रव्य-दृश्य सामग्री वह सामग्री है जो कक्षा में या अन्य शिक्षण परिस्थितियों में लिखित या बोली गयी पाठ्य-सामग्री के समझने में सहायता प्रदान करती है। - डैण्ट


(2) “कोई भी ऐसी सामग्री जिसके माध्यम से शिक्षण प्रक्रिया को उद्दीपित किया जा सके अथवा श्रवेनेन्द्रियाँ संवेदनाओं द्वारा आगे बढ़ाया जा सके श्रव्य-दृश्य सामग्री कहलाती है। - कार्टर ए. गुड


(3) “श्रव्य-दृश्य सामग्री के अंतर्गत उन सभी साधनों को सम्मिलित किया जाता है। जिनकी सहायता से छात्रों की पाठ में रुचि बनी रहती है तथा वे उसे सरलतापूर्वक समझते हुए अधिगम के उदेश्य को प्राप्त कर लेते हैं। - एलविन स्ट्रौंग


उपर्युक्त परिभाषाओं से स्पष्ट है कि श्रव्य-दृश्य सामग्री वह सामग्री, उपकरण तथा युक्तियाँ हैं जिनका प्रयोग करने से विभिन्न शिक्षणपरिस्थितियों में छात्रों और समूहों के मध्य प्रभावशाली ढंग से ज्ञान का संचार होता है।

वास्तव में श्रव्य-दृश्य सामग्री बह अधिगम अनुभव हैं जो शिक्षण प्रक्रिया को उद्दीपित करते हैं, छात्रों को नवीन ज्ञान प्राप्त करने के लिए प्रेरित करते है था शिक्षण सामग्री को अधिक स्पष्ट करते हुए, उसे छात्रों के लिए सरल, सहज तथा बोधगम्य बनाते हैं।

श्रव्य-दृश्य सामग्री शिक्षा के विभिन्न प्रकरणों को रोचक, स्पष्ट तथा सजीव बनाती है। इसमें “ज्ञानेन्द्रियों प्रभावित होकर पढ़ाये गये पाठ को स्थायी बनाने में सहायता प्रदान करती हैं।' श्रव्य-दृश्य सामग्री के प्रयोग से शिक्षण आनन्ददायक हो जाता है और छात्रों के मन पर स्थायी प्रभाव छोड़ जाता है।


श्रव्य-दृश्य सामग्री के उद्देशय
(OBJECTIVES OF AUDIO-VISUAL AIDS)

 

शिक्षा में श्रव्य-दृश्य सामग्री का उपयोग विशेष रूप से निम्नांकित उद्देश्यों की प्राप्त हेतु किया जाता है -


(1) बालकों में पाठ के प्रति रूचि पैदा करना तथा विकसित करना।


(2) बालको में तथ्यात्मक सुचनाओं को रोचक ढंग से प्रदान करना।


(3) सीखने में रुकने की गति (Retention) में सुधार करना।


(4) छात्रों को अधिक क्रियाशील बनाना।


(5) पढने में अधिक रुचि बढ़ाना।


(6) अभिरुचियों पर आशानुकूल प्रभाव डालना।


(7) तीव्र एवं मन्द बुद्धि बालकों को योग्यतानुसार शिक्षा देना।


(8) पाठय-सामग्री को स्पष्ट, सरल तथा बोधगम्य बनाना।

 

(9) बालक का अवधान पाठ की ओर केन्द्रित करना।


(10) बालकों की निरीक्षण शक्ति का विकास करना।


(11) अमूर्त पदार्थो को मूर्त रूप देना ।


(12) बालकों को मानसिक रूप से नये ज्ञान की प्राप्ति हेतु तैयार करना और प्रेरणा देना ।


श्रव्य-दृश्य सामग्री की आवश्यकता तथा महत्त्व
(NEED AND IMPORTANCE OF AUDIO-VISUAL AIDS)


शिक्षा में ज्ञानेन्द्रियों पर आधारित ज्ञान ज्यादा स्थायी माना गया है। श्रव्य-दृश्य सामग्री मे भी ज्ञानेन्द्रियों द्वारा शिक्षा पर विशेष बल दिया जाता है। छात्रों में निम्न वस्तओं के विषय में आकर्षण होता है। नवीन वस्तुओं के बारे में जानने की स्वाभाविक जिज्ञासा होती है।

श्रव्य-दृश्य सामग्री में ‘नवीनता' का प्रत्यय निहित रहता है, फलस्वरूप छात्र सरलता से नया ज्ञान प्राप्त करने में समर्थ होते हैं, श्रव्य-दृश्य सामग्री छात्रों के ध्यान को केंद्रित करती है तथा पाठ में रूचि उत्पन्न करती है, जिससे वे प्रेरित होकर नया ज्ञान प्राप्त करने के लिए लालायित हो जाते हैं।

 

शिक्षा में छात्रों को सक्रिय रहकर ज्ञान प्राप्त करना होता है। श्रव्य-दृश्य सामग्री छात्रों को मानसिक भावना, संवेगात्मक सन्तुष्टि तथा मनोवैज्ञानिक आवश्यकताओं की पूर्ति करते हुए उन्हें शिक्षा प्रक्रिया में सक्रिय रूप से भाग लेने के लिए प्रेरित करती है।


छात्रों को ज्ञान, सरल, सहज तथा बोधगम्य तभी महसूस होता है जब उनकी व्यक्तिगत विभिन्ताओं पर ध्यान देते हुए शिक्षा दी जाए। श्रव्य-दृश्य सामग्री बालकों को उनकी रुचि, योग्यताओं तथा क्षमताओं तथा रूझानों के अनुरूप शिक्षा प्रदान करने में सहायक सिद्ध होती है।


ऐसे विषय तथा विचार जो मौखिक रूप से व्यक्त नहीं किये जा सकते, उनके लिए श्रव्य-दृश्य सामग्री अत्यंत उपयोगी एवं महत्वपूर्ण सिद्ध हुई है। इनकी सहायता से अनुदेशन तथा शिक्षण अधिक प्रभावशाली होता है।


मैकोन तथा राबर्ट्स ने श्रव्य-द्रश्य सामग्री के महत्व पर प्रकाश डालते हुए कहा है। “शिक्षक श्रव्य-दृश्य सामग्री (उपकरणों) द्वारा छात्रों की एक से अधिक इन्द्रियों को प्रभावित करके पाठ्य-वस्तु को सरल, रुचिकर तथा प्रभावशाली बनाते है।।


फ्रांसिस डब्ल्यू नायल के अनुसार, "किसी भी शैक्षणिक प्रोग्राम का आधार अच्छा अनुदेशन है तथा ्श्रव्य-दृश्य प्रशिक्षण साधन इस आधार के आवश्यक अंग हैं।

 

एडगर ब्रूस वैसले ने श्रव्य-दृश्य सामग्री के महत्व को स्वीकार करते हुए लिखा है 


श्रव्य-दृश्य साधन अनुभव प्रदान करते हैं। उनके प्रयोग से वस्तुओं तथा शब्दों का संबंध सरलता से जुड़ जाता है। बालकों के समय की बचत होती है, जहाँ बालकों का मनोरंजन होता है वहाँ बालकों की कल्पना शक्ति तथा निरीक्षण शक्ति का भी विकास होता है।


डॉ. के. पी. पाण्डेय ने श्रव्य-दृश्य सामग्री की आवश्यकता एवं महत्त्व का विवेचन करते हुए निम्मांकित विचार बिन्दु प्रस्तुत किये हैं ।


(1) श्रव्य-दृश्य सामग्री द्वारा अधिगम की प्रक्रिया में ध्यान तथा अभिप्रेणा बनाये रखने में मदद मिलती है।


(2) श्रव्य-दृश्य सामग्री का उपयोग करने से विषय-वस्तु का स्वरूप जटिल की अपेक्षा सरल बन जाता है।


(3) यह सामग्री छात्रों को विषय-वस्तु को समझाने में मदद देती है।


(4) शिक्षण अधिगम व्यवस्था को कुशल, प्रभावी व आकर्षक बनाने में समर्थ है।


(5) कक्षा-शिक्षण में एक विशेष स्तर तक संवाद बनाये रखने में तथा उसमें गतिशीलता कायम रखने में यह समर्थ होती है।

 

(6) व्यक्तिगत विभिन्नताओं पर यह ध्यान देती है।


(7) शिक्षण अधिगम क प्रक्रिया को वैज्ञानिक एवं मनोवैज्ञानिक आधार प्रदान करते हुए अधिगम संसाधनों का विस्तार करती है।


(8) शिक्षण परिस्थितियों को मूर्त एवं जीवन्त बनाने की श्रव्य-दृश्य सामग्री की अदभुत क्षमता होती है, जिससे अन्तरण अधिक प्रभावशाली एवं सरल हो जाता है।


श्री एन. भंडूला के अनुसार, “Audio Visual Aids attract and hold attention and assist in forming correct images. Complex principles are understood clearly. Verbalization often leaves the teacher in fool's paradise. He may squeeze immense self satisfaction by delivering an eloquent lecture and in making the pupils learn by scholarly display of words but he may not have understood much and may be confused. So aids are here to help him."


श्रव्य-दृश्य सामग्री की विशेषताएँ
(CHARACTERISTICS OF AUDIO-VISUAL AIDS)


शिक्षा में उपयोगी श्रव्य-दृश्य सामग्री को निम्नांकित विशेषताओं के कारण आधुनिक युग में ज्यादा महत्व दिया जाने लगा है


(1) श्रव्य-दृश्य सामग्री स्थायी रूप से सीखने एवं समझने में सहायक है।

 

(2) मौखिक बात को कम करती है।


(3) यह अनुभवों द्वारा ज्ञान प्रदान करती है।


(4) यह नैरेशन (Narration) द्वारा शिक्षा देती है।


(5) यह समय की बचत तथा रुचि में वृद्धि करती है।


6) यह विचारों में प्रवाहात्मकता प्रदान करती है।


(7) प्राध्यापक को उपयोगी एवं अच्छे शिक्षण में सहायता करती है।


8) भाषा सम्बन्धी कठिनाइयों को दूर करती है।


(9) विभिन्न प्रकार की विधाओं का प्रयोग करती है।


(10) छात्र अधिक सक्रिय रहते हैं और पाठ को सरलता से याद कर सकते हैं।


(11) वैज्ञानिक प्रवृत्ति का विकास होता है ।


(12) छात्र स्वयं कार्य करने पर अपने को अधिक योग्य एवं साधन-सम्पन्न तथा आत्मनिर्भर मानने लगते हैं।

 

(13) विभिन्न विषयों के अन्वेषण के प्रति उत्सुकता जाग्रत होती है।


(14) वस्तुओं को प्रत्यक्ष रूप से देखने का अवसर मिलता है।


(15) प्राकृतिक एवं कृत्रिम वस्तुओं की तुलनात्मक अध्ययन करने के लिए अच्छे अवसर मिलते हैं।


(16) छात्रों को उपकरण प्रयोग करने की विधि का ज्ञान होता है।

(17) सहायक सामग्री सूक्ष्म बातों को सरलता से समझा देती है और छात्रों की कल्पना एवं विचार शक्ति का विकास करती है।


श्रव्य-दृश्य सामग्री के आवश्यक गुण
(ESSENTIAL QUALITIES OF AUDIO-VISUAL AIDS)


एक अच्छी श्रव्य-दृश्य सामग्री में निम्नांकित गुण होना आवश्यक है


(1) परिशुद्धता (Accuracy) - सम्बन्धित विषय प्रकरण को स्पष्ट करने के लिए सही श्रव्य-दृश्य सामग्री का चयन किया जाना चाहिए। कॉमर्स पढ़ाने के लिए विज्ञान के मॉडल लेकर पढाना उचित नहीं है, भले ही उनमें कितनी भी साम्यता क्यों न हो जो विषय पढ़ायें उसी का मॉडल प्रयोग करना चाहिए।


(2) संबंद्धता (Relevancy) - मानव ‘हृदय' पढाने के लिए मानव के हृदय का ही प्रयोग करना चाहिए। सभी हृदयों को एक-सा समझकर यदि मेढक के हृदय का मॉडल दिखाकर छात्रों को समझाया जाता है तो यह गलत होगा। अत: श्रव्य-दृश्य सामग्री में सम्बन्धता का गुण अवश्य होना चाहिए।

 

(3) यथार्थता (Realism) - श्रव्य-दृश्य सामग्री जिस प्रक्रिया, विषय-वस्तु अथवा प्रत्यय को स्पष्ट करने के लिए प्रयोग की जा रही है वह उस प्रक्रिया, विषय-वस्तु या प्रत्यय का 100% प्रतिनिधित्व यथार्थ रूप होना चाहिए। यदि यह यथार्थता नहीं है तो यह सामग्री उपयुक्त नहीं है।


(4) रोचकता (Interesting) - एक उत्तम श्रव्य-दृश्य सामग्री में छात्रों की रुचि जाग्रत करने की क्षमता होनी चाहिए। यदि यह शिक्षण में रोचकता नहीं ला पाती तो शिक्षण सामग्री की उपयुक्ता संदिग्ध हो जाती है।


(5) अनुकूलता (Adoptability) - एक अच्छी श्रव्य-दृश्य सामग्री में अनुकुलता का गुण होना चाहिए। यदि सामग्री विषय तथा प्रकरण के अनुकूल नहीं है और न ही अनुकूल बनाई जा सकती है तो ऐसी सामग्री का प्रयोग नहीं किया जाना चाहिए।


(6) कम-से-कम समय लेने वाली (Less Time Consuming) - एक अच्छी शिक्षण सहायक सामग्री कक्षा-शिक्षण प्रक्रिया का कम समय लेने वाली होनी चाहिए। कहा भी गया है Don't teach aids, Teach the Subject with aids. सामग्री के विवेचन की अपेक्षा विषय-वस्तु के विवेचन पर ध्यान दिया जाना चाहिए।


(7) कम कीमती सामग्री (Less Costly Aid) - यथासम्भव जिस श्रव्य-दृश्य सामग्री का प्रयोग किया जाये उसकी कीमत कम-से-कम होनी चाहिए। यदि इसकी कीमत ज्यादा है तथा विद्यालय या शिक्षक इसे नहीं खरीद सकता तो यह व्यर्थ है। प्रयास किया जाना चाहिए कि ज्यादा-से-ज्यादा Improvised Teaching Aids का प्रयोग किया जाये। बहुत कम खर्च में छात्रों व शिक्षकों द्वारा सामग्री स्वयं भी बनाई जा सकती है।


(8) सामग्री की उपलब्धता (Availability of Aids) - एक अच्छी शिक्षण सामग्री शिक्षक के लिए उपलब्ध होनी चाहिए। यदि सामग्री में सभी अच्छे गुण हैं परन्तु वह उपलब्ध नहीं है तो शिक्षक के लिए बेकार है।

 

श्रव्य-दृश्य सामग्री का चयन करते समय ध्यान देने योग्य बिन्दु
(PRECAUTIONS TO BE TAKEN WHILE SELECTING AIDS)


श्रव्य-दृश्य सामग्री -

(1) छात्रों के अनुभव, समझ, आयु, आवश्यकता, प्रकरण तथा विषय-वस्तु की प्रकृति के अनुरूप होनी चाहिए।


(2) अध्ययन के प्रकरण से सम्बन्धित होनी चाहिए।


(3) प्रकरण का शुद्ध स्वरूप प्रस्तुत करने वाली होनी चाहिए।


(4) कक्षा के अधिगम लक्ष्यों की प्राप्ति में सहायक होनी चाहिए।


(5) छात्रों के परिवेश के अनुसार होनी चाहिए, ताकि उसके माध्यम से प्रकरण के समस्त बिन्दुओं का ज्ञान प्राप्त हो सके ।


(6) एक वस्तु को समझाने के लिए अनावश्यक रूप से ज्यादा सामग्री का प्रयोग नहीं किया जाना चाहिए।


(7) चयन के समय केवल एक ऐसी सामग्री का चयन किया जाना चाहिए जो छात्रों में रुचि जगा सके, उन्हें जिज्ञासु बना सके और उन्हें प्रेरणा दे सके।


(8) जितनी देर आवश्यक है, उतनी ही देर तक प्रयोग की जानी चाहिए। अनावश्यक रूप से पूर्ण कालांश अवधि के लिए सामग्री का प्रदर्शन उचित नहीं है।


(9) जो सरल, सुगम तथा उपयुक्त हो उसी का चयन किया जाना चाहिए।

 

(10) चयन के समय इस बात का ध्यान भी रखना चाहिए कि चयनित सामग्री शिक्षणात्मक मूल्यों से युक्त हो।


(11) जो सामग्री प्रयोग की जा रही है, सही हालत में होनी चाहिए।


(12) उपयोग से पूर्व शिक्षक को एक बार उस सामग्री को उपयुक्त कृत्रिम वातावरण में प्रयोग करके देख लेना चाहिए। यदि शिक्षक सरलतापूर्वक प्रभावशाली ढंग से वह सामग्री प्रयोग कर सकता है, तभी उसका चयन किया जाना चाहिए, अन्यथा नहीं।


(13) सामग्री के चयन के पश्चात सामग्री के प्रभावशाली उपयोग से सम्बन्धित सभी निर्देशों तथा सावधानियों को ध्यानपूर्वक पढ़ना चाहिए तथा सामग्री का उपयोग करना चाहिए।


श्रव्य-दृश्य सामग्री का वर्गीकरण
(CLASSIFICATION OF AUDIO-VISUAL AIDS)


शिक्षाशास्त्रियों ने श्रव्य-दृश्य सामग्रियों का वर्गीरण अनेक आधारों पर किया है। ये आधार नीचे दिये जा रहे हैं।


I. इन्द्रियों के आधार पर (Based on the use of Senses)


  • श्रव्य सामग्री (Audio Aids)
  • दृश्य सामग्री (Visual Aids)
  • श्रव्य-दृश्य सामग्री (Audio-Visual Aids)


II. प्रौद्योगिकी / तकनीकी के आधार पर (Based on Technology)


  • सॉफ्टवेयर (Software)
  • हार्डवेयर (Hardware)


III. प्रक्षेपण के आथार पर (Based on Projection)


  • प्रक्षेपित सामग्री (Projected Aids)
  • अप्रक्षेपित सामग्री (Non-Projected Aids)

 

इन्द्रियों के आधार पर


(1) श्रव्य सामग्री (Audio Aids) - इस प्रकार की सामग्री के माध्यम से छात्र श्रवणेन्द्रिय के माध्यम से ज्ञान प्राप्त करता है। इसके प्रमुख उदाहरण रेडियो या टेपरिकॉर्डर हैं। इस प्रकार के उपकरणों से छात्रों को सम्बन्धित नवीन खोजों वैज्ञानिक आविष्कारों तथा वैज्ञानिकों की जीवनियों के विषय में सुनाकर ज्ञान प्रदान किया जाता है। इसमें रेडियो प्रसारण, टेपरिकॉर्डिंग तथा ग्रामोफोन एवं लिंग्वाफोन आदि आते हैं।


(2) दृश्य सामग्री (Visual Aids) - दृश्य सामग्री के प्रयोग से ज्ञान प्रत्यक्षीकरण (Perception) द्वारा प्राप्त होता है। यदि छात्र को पौधे के विभिन्न भागों के बारे में बताया जा रहा है तो वास्तविक रूप से पौधे का प्रयोग किया जाना चाहिए। जिस वस्तु को बालक देखते है उसमें अधिक रुचि लेते हैं और उत्सुकता दिखाते हैं। इसमें मॉँडल, चार्ट, ग्राफ, मानचित्र, बुलेटिन बोर्ड, फ्लेनल बोर्ड, संग्रहालय, मैजिक लालटेन, स्लाइडें, वास्तविक पदार्थ तथा श्यामपट आदि आते हैं।


(3) श्रव्य-दृश्य सामग्री (Audio-Visual Aids) - इस प्रकार की सामग्री के प्रयोग से आँख और कान दोनों को एक साथ कार्य करना पड़ता है। बालक आँख से देखकर और कान से सुनकर, शिक्षण-बिन्दुओं को स्मरण करने का प्रयत्न करता है। इनके द्वारा प्रदत्त ज्ञान में परिशुद्धता, यथार्थता, प्रासंगिकता तथा ग्राहाता (Comprehensibility) का गुण होना आवश्यक है। इनके अभाव में श्रव्य-दृश्य सामग्री उपादेय नहीं रहती । इसमें टेलीविजन, ड्रामा, चित्र, कम्यूटर सहायक सामग्री, फिल्में तथा रेडियोविशन आदि सम्मलित है।


प्रौद्योगिकी / तकनीकी के आधार पर

 

(1) सॉफ्टवेयर - इसमें छपी हुई सामग्री, जैसे चित्र, ग्राफ, चार्ट, पुस्तक, मानचित्र कार्टून तथा मॉडल आदि आते हैं।


(2) हार्डवेयर - इसमें रेडियो, टी.वी, टेली- लैक्चर, रिकॉर्ड प्लेयर, एपीडायस्कोप प्रोजेक्टर, सिनेमा, कम्प्यूटर आदि आते हैं।


प्रक्षेपण के आधार पर


(1) प्रक्षेपित सामग्री (Projected Aids) - इसमें वे सभी सामग्री आती हैं जिनका प्रक्षेपण किया जाता है; जैसे - स्लाइड, फिल्मस्ट्रिप आदि।


(2) अप्रक्षेपित सामग्री (Non-Projected Aids) - इसके अन्तर्गत विभिन्न प्रकार के चार्ट, चित्र, प्रतिरूप तथा निदर्श (Specimen) रखे जाते हैं।


AUDIO AND VISUAL AIDS USEFUL IN TEACHING

AUDIO AND VISUAL AIDS USEFUL IN TEACHING


शिक्षण में उपयोगी श्रव्य-दृश्य सामग्री
(USEFUL AUDIO-VISUAL, AIDS)


शिक्षण में प्रमुखता निम्न प्रकार की श्रव्य-दृश्य सामग्री का प्रयोग किया जाता है


(1) श्यामपट्ट (Black Board),

(2) वास्तविक पदार्थ (प्रत्यक्ष वस्तुए) (Real Objects)

(3) मॉडल/प्रतिमान (Models),

(4) स्लाइड (Slide),

(5) फिल्मस्ट्रिप तथा फिल्म (Filmstrip and Films),

(6) चार्ट, ग्राफ, नक्शे, ग्लोब तथा चित्र व रेखाचित्र (Chart, Graph, Map, Globe, Photo and Diagrams),

(7) पत्र-पत्रिकाएँ (Journals and Magazines),

(8) विज्ञान वाटिका (Science Garden)

(9) संग्रहालय तथा प्रदर्शनी (Museum and Exhibition),

(10) रेकॉर्डिंग (Recording),

(11) शिक्षण खेल (Teaching Games),

(12) जल, स्थल व वायु जीवशाला (Aquarium, Terrarium and Vibrarium),

(13) भ्रमण/सरस्वती यात्राएँ (Excursions),

(14) नाटकीय अभिनय (Dramatization),

(15) बुलेटिन बोर्ड तथा फलानैल बोर्ड (Bulletin Board and Flannel Board),

(16) श्रव्य-दृश्य पुस्तकालय (Audio-Visual Library)

 

  (a) रेडियोट्रांजिस्टर,

  (b) माइक्रोस्कोप व माइक्रो प्रोजेक्टर,

  (c) टेप रिकॉरडर,

  (d) स्लाइड प्रोजैक्टर

  (e) मैजिक लालटेन, एपीडायस्कोप तथा ओवरहैड प्रोजैक्टर,

  (f) फिल्मस्ट्रप तथा फिल्म प्रोजेक्टर

  (g) टेलीविजन

  (h) क्लोज सर्किट टेलीविजन (C.C.T.V.),

  (i) वी. सी. आर,

  (j) कंप्यूटर तथा

  (k) शिक्षण मशीन

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