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आगमन और निगमन विधियों में अंतर Difference Between Inductive and Deductive Method in Hindi

आगमन और निगमन विधियों में अंतर
Difference Between Inductive and Deductive Method


आगमन तथा निगमन विधि
(Inductive and Deductive Method)


आगमन विधि में हम तर्क करते हुए ‘विशिष्ट से सामान्य की ओर' (From Specific to General) तथा ‘स्थूल से सूक्ष्म की ओर (From Concrete to Abstract) की ओर बढ़ते हैं जबकि निगमन विधि में ‘सामान्य से विशिष्ट की ओर' या ‘नियम से उदाहरण की ओर' (From Rule to Example) की ओर चलते हैं। इस प्रकार ये दोनों विधियाँ एक दूसरे के विपरीत हैं।

सर्वप्रथम अध्यापक को आगमन विधि का ही प्रयोग करना चाहिये इसके पश्चात् निगमन विधि के प्रयोग से वह विद्यार्थियों को काफी लाभ पहुँचा सकता है। आगमन विधि द्वारा खोज किये गये नियमो तथा सिद्धान्तों को प्रयोग करने की क्षमता निगमन विधि द्वारा ही मिलती है। जब तक विद्यार्थी स्वयं के परिश्रम से प्राप्त किये गये ज्ञान को भिन्न-भिन्न समस्याओं को हल करने में प्रयोग में नहीं लाते तब तक वह ज्ञान उनके ज्ञान का स्थायी अंग नहीं बन सकता । इस प्रकार का ज्ञान न 'तो स्थायी ही होता है और न उपयोगी ही। यह ज्ञान केवल परीक्षा में उत्तीर्ण होने में ही सहायक हो सकता है।।

आगमन विधि में विद्यार्थियों को स्वर्य नियम अथवा सिद्धान्तों की खोज करने का अवसर मिलता है। उनके सम्मुख अध्यापक एक ही प्रकार की कुछ समस्यायें प्रस्तुत करता है। विद्यार्थी उनको हल करके उनमें समानता देखते हैं और फिर एक नियम की खोज कर लेते हैं।

प्रो० हॉब्सन (Hobson) महोदय के अनुसार - “The teacher must make his pupils stand on tip-toe to pluck the fruit....” अर्थात अध्यापक को चाहिये कि वह अपने शिष्यों को ज्ञान का फल तोड़ने के लिये स्वयं पंजों पर उचकने दे।

यह विधि निम्न उदाहरणों द्वारा भली प्रकार समझ में आ जायेगी।


(1) एक बच्चा हरे रंग का सेब खाता है, उसे वह खट्टा लगता है। दूसरे दिन वह फिर हरे रंग का सेब चखता है, यह भी खट्टा निकलता है। फिर कभी वह हरे रंग का सेब खाता है, तो वह भी खट्ट ही है। तब विद्यार्थी आगमन विधि द्वारा उदाहरणों से सीख जाता है कि हरे रंग के सेब खट्टे होते हैं। फिर जब वह हरे रंग का सेब देखता है। तो बिना खाये ही कह देता है कि हरे रंग का सेब खट्टा होगा। जो ज्ञान इस विधि द्वारा प्राप्त किया जाता है वह आगमन विधि द्वारा प्राप्त होता है।


(2) परसों सूर्य उदय हुआ था, कल भी हुआ, आज भी हुआ है। इससे यह नियम निकलता है कि कल भी सूर्य उदय होगा। सूर्य अनेकों शताब्दियों से उदय होता आया है, अतः आने वाले समय में भी इसी प्रकार उदय होता रहेगा। इस प्रकार के नियम मनुष्य अपने अनुभव तथा उदाहरणों द्वारा वनाता है।


(3) कागज का एक टुकड़ा ऊपर आकाश की ओर फेंका तो वह भूमि पर गिर पड़ा, ईट अथवा पत्थर का टुकड़ा भी ऊपर की ओर फेंकने से पुनः पृथ्वी पर ही गिर पड़ता है। इन उदाहरणों से यह परिणाम निकलता है कि सारी वस्तुवे पृथ्वी की ओर आकर्षित होती हैं।

(4) इसके विपरीत निगमन विधि में बालकों को नियम पहले ही बता दिये जाते हैं। वह उन्हें रट कर प्रश्नों को हल करते हैं और देखते हैं कि उनका उत्तर ठीक है या नहीं। इस प्रकार से वह बताये गये नियमों को उदाहरणों में प्रयोग करके उनकी पुष्टि कर लेते हैं।


आगमन विधि 
(Inductive Method)


विशेषतायें (Merits) - इस विधि की मुख्य विशेषतायें निम्नलिखित हैं


(1) इस विधि द्वारा ज्ञान स्थायी एवं उपयोगी होता है।

(2) इस विधि में छात्र थकावट महसूस नहीं करते तथा निष्कर्ष तक पहुँचने में धैर्य और प्रसन्नता का अनुभव करते हैं।

(3) यह विधि बालकों को स्वयं काम करने के लिये प्रेरित करती है जिससे उनमें आत्म-विश्वास की भावना में वृद्धि होती है।

(4) इस विधि से गणित के नवीन नियम, सम्बन्ध, सिद्धान्त, निष्कर्ष आदि ज्ञात किये जा सकते हैं।

(5) यह विधि छोटी कक्षाओं के लिए विशेष उपयोगी है क्योंकि इसमें विशिष्ट से सामान्य की ओर' तथा ‘स्थूल से सूक्ष्म की ओर' जैसे मनोवैज्ञानिक एवं व्यावहारिक सिद्धान्तों का समावेश किया जाता है।

(6) इस विधि में बालकों में गणित के प्रति रुचि एवं उत्सुकता बनी रहती है।

(7) विद्यार्थी नियमों, सूत्रों एवं संबंधो को ज्ञात करने आधारभूत सिद्धान्तों से परिचित रहते हैं।


सीमाए (Limitations) - इस विधि की मुख्य सीमायें निम्नलिखित हैं -

(1) इस विधि से प्राप्त नियम कुछ सीमा तक ही शुद्ध होते हैं।

(2) यह विधि उच्च कक्षाओं में काम में नहीं लाई जा सकती क्योंकि अनेकों ऐसे प्रकरण होते हैं जिनका आरम्भ प्रत्यक्ष उदाहरणों से सम्भव नहीं है।

(3) इस विधि के प्रयोग में अध्यापक को पर्याप्त परिश्रम और समय लगाना पड़ता है।

(4) इस विधि का सफल प्रयोग केवल अनुभवी अध्यापक ही कर सकते हैं।

(5) इस विधि द्वारा केवल नियम का ही पता लगता है। समस्या को हल करने की क्षमता का विकास इस विधि द्वारा सम्भव नहीं है।


निगमन विधि
Deductive Method)


विशेषतायें (Merits) - इस विधि की मुख्य विशेषतायें निम्नलिखित हैं


(1) इस विधि में विद्यार्थी को प्रत्येक सुत्र, विधि, नियम या निष्कर्ष को खोजना नहीं पड़ता।

(2) इस विधि से ज्ञात सुत्रों की उपयोगिता का क्षेत्र बहुत व्यापक है।

(3) इस विधि में छात्रों एवं अध्यापकों को कम परिश्रम करना पड़ता है।

(4) नवीन समस्याओं को हल करने के लिए यह विधि अत्यन्त उत्तम है।

(5) सूत्र या नियम पहले ही ज्ञात होने के कारण प्रश्नों को हल करने में एक विशेष सुविधा होती है।


सीमायें (Limitations) - इस विधि की मुख्य सीमायें निम्नलिखित हैं -

(1) इस विधि से अरजित ज्ञान स्थायी नहीं होता।

(2) यह विधि छोटी कक्षाओं के लिये उपयोगी नहीं है।

(3) इस विधि में रटने को अधिक बल मिलता है तथा विद्यार्थी को तर्क एवं अन्वेषण करने के अवसर प्राप्त नहीं होते।

(4) यह विधि मनोवैज्ञानिक नहीं है।

(5) इस विधि की सफलता आगमन विधि के साथ प्रयोग करने पर निर्भर करती है,


आगमन और निगमन विधियों की तुलना
(Comparison Between Inductive and Deductive Method)


आगमन विधि (Inductive)


(1) इसमें ‘विशिष्ट से सामान्य' की ओर तथा 'स्थूल से सूक्ष्म' की ओर दो प्रमुख शिक्षण सूत्रों का प्रयोग किया जाता है।

(2) इसमें एक सामान्य नियम निकाला जाता है।

(3) नियम का अनुसंधान बालक स्वयं करता है जिससे उसमें आत्म-विश्वास की भावना का विकास होता है।

(4) यह छोटे बालकों के लिए अधिक उपयोगी तथा रोचक है।

(5) इस विधि में छात्र सक्रिय रहते हैं।

(6) यह अध्यापन की श्रेष्ठ विधि है ।

(7) इस विधि द्वारा किसी तथ्य को सीखने में अधिक समय लगता है।

(8) इस विघि में बालक को स्वतंत्र रूप से सोचने एवं तर्क करने के अवसर मिलते हैं।

(9) यह अनुसंधान का मार्ग है ।

(10) इसमें नियम के भूल जाने पर विद्यार्थी उसकी पुनः खोज कर सकते हैं।

(11) यह एक मनोवैज्ञानिक विधि है।


निगमन विधि (Deductive)


(1) इसमें ‘सामान्य से विशिष्ट की ओर शिक्षण सूत्र का प्रयोग किया जाता है।

(2) इसमें सामान्य नियम पहले बता दिया जाता है तथा बाद में उदाहरण से पुष्टि की जाती है।

(3) नियम के लिए बालक दूसरों पर आश्रित रहता है।

(4) यह बड़े विद्यार्थियों के लिए उत्तम है।

(5) इस विधि में अध्यापक अधिक क्रियाशील रहते हैं।

(6) यह अध्ययन की उत्तम विधि है।

(7) इस विघि द्वारा सीखने में समय कम लगता है।

(8) इस विधि में चिन्तन एवं तर्क करने के अवसर प्राप्त नहीं होते।

(9) यह अनुकरण का मार्ग है।

(10) नियम के भूल जाने पर विद्यार्थी उसे प्रायः फिर से याद नहीं कर पाते ।

(11) यह एक अमनोवैज्ञानिक किन्तु व्यावहारिक विधि है।

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