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Collaboration and Partnership b.ed notes in Hindi| सहयोग और सहभागिता

प्रतिस्पर्धा क्या है ? What is Competition ?


  • प्रतिस्पर्धा सामाजिक संघर्षों के मूलभूत स्वरूप में से एक है।
  • प्रतिस्पर्धा व्यक्तियों और समूहों के बीच गैर - वैयक्तिक, गैर-सचेतन और लगातार संघर्ष की स्थिति को इंगित करती है।
  • यह संघर्ष कुछ माँगों के प्रति उसकी संतुष्टि के लिए होता है क्योंकि सीमित मात्रा में संसाधनों की वजह से सबकी माँगें पूरी नहीं हो सकती।
  • प्रतिस्पर्धा को एक स्वस्थ और आवश्यक सामाजिक प्रक्रिया भी कहा जाता है। इसलिए सामाजिक रूप से किसी भी इच्छित लक्ष्य को पाने की दिशा में प्रतिस्पर्धा को भावना को सायास शामिल किया जाता है।
  • उदाहरण के लिए छात्रों की रचनात्मक और उत्कृष्ट्ता को बढ़ने के लिए उनके बीच छात्रवृतियां वितरित की जाती हैं।


बिसेंज के अनुसार, " क्योंकि सीमित मात्रा में होने के कारण सबके लिए इसे पाना सम्भव नहीं। अतः प्रतिस्पर्धा दो और उससे अधिक लोगों द्वारा किसी लक्ष्य को पाने का प्रयास है।"।

 

एण्डरसन व पार्कर के अनुसार, “प्रतिस्पर्धा सामाजिक व्यवहार का वह रूप है जिसमें हम किसी भौतिक व गैर-अभौतिक वस्तु को पाने के लिए एक-दूसरे के विरुद्ध होड़ में शामिल होते है।


सहयोग की तरह ही सामाजिक जीवन में प्रतिस्पर्धा भी अनिवार्य है। यह इस तथ्य से व्यक्त होता है कि व्यक्तिगत तौर पर आदमी स्वतन्त्र गति में सक्षम होता है और स्वतन्त्र कार्य के परिणामस्वरूप उसमें स्वतन्त्र अनुभव प्राप्त करने की क्षमता होती है। कुछ समाजशास्त्रियों का मानना है कि प्रतिस्पर्धा सहयोग से भी अधिक आधारभूत प्रक्रिया है।

हॉब्स का मानना है कि संघर्ष जीवन का सर्वाधिक आधारभूत नियम है। आदिम समय का मनुष्य लगातार युद्ध की स्थिति में रहा। कुछ प्रारंभिक सामाजिक सिद्धान्तों में प्रतिस्पर्धा के लाभकारी प्रभावों की ओर संकेत किया गया है ।

उपयोगितावाद का दावा है कि प्रतिस्पर्धा से उदार सामाजिक प्रभाव पैदा हुए हैं वयोंकि प्रतिस्पर्धा ही वह सर्वाधिक विश्वसनीय तरीका रही है, जिससे संपत्ति पैदा की जा सके ।

सामाजिक डार्विनवाद ने प्रकृति के अस्तित्व को बचाने के लिए संघर्ष और समाज में रहने वाले लोगों के आपसी संघर्ष के बीच समान्तर रेखा खींच दी।

 

हर मामले में प्राकृतिक चलन की प्रक्रिया ने सर्वाधिक सक्षम के अस्तित्व में रहने का सिद्धान्त सुनिश्चित कर दिया।

इसके साथ ही इसने प्रजातियों की गुणवत्ता भी सुधार दी। कमजोर, कम बुद्धिमान और सामाजिक रूप से कमजोरों को संरक्षण देने के संस्थागत प्रयास, उदाहरण के लिए- शहरी गरीबी को कम करने के लिए राज्य के हस्तक्षेप को प्राकृतिक चयन के सिद्धान्त की यह विशेष पहल स्पेन्सर से काफी नजदीकी से जुड़ी है।

स्पेन्सर के विकासवाद का लोकप्रिय संस्करण उसकी उस दलील की अनदेखी करता है जिसमें कहा गया है कि सहयोग एक जटिल समाज का निर्देशक तत्व है, जबकि प्रतिस्पर्धा प्राचीन समाज की केन्द्रीय विशेषता का युग है।


सहयोग क्या है ? What is COLLABORATION ?


आज का युग अंतरराष्ट्रीयता का युग है। इसमें वैश्वीकरण की प्रक्रिया तेजी से बढ़ रही है। इसके कारण आज निम्न प्रवृत्तियों की ओर सबका ध्यान केन्द्रित हो रहा है


1. प्रतियोगिता (Competition),

2. साझेदारी (Partnership),

3. सहयोग (Collaboration) ।

 

सहयोग का अर्थ (Meaning of Collaboration) - इसका अर्थ है- लाभ प्राप्ति के लिए एक-दूसरे की मदद करना। यह साथ-साथ कार्य करने की प्रक्रिया है जिससे सामान्य उद्देश्य को प्राप्त किया जा सकता है। सहयोग दो व्यक्तियों, समूहों, राज्यों व राष्ट्रों के बीच हो सकता है। इसके कई क्षेत्र हो सकते हैं। कुछ मुख्य क्षेत्र हैं :-


1. शिक्षा (Education)

2. कृषि (Agriculture)

3. उद्योग (Industry)

4. विज्ञान व तकनीकी (Science and Technology)

5. चिकित्सा (Medicine)

6. व्यापार (Business)

7. सामान्य समस्याएँ (Common problems)


राष्ट्रीय व अन्तर्राष्ट्रीय दोनों स्तरों पर इसका बहुत महत्व है। यदि यह कहा जाए कि यह आज के युग की आवश्यकता है तो कोई अतिशयोक्ति नहीं होगी। इसका महत्व निम्न कारणों से है :-


1. आज का युग अंतरराष्ट्रीयता का युग है।

2. संचार के साधनों के विकास के कारण विभिन्न देशों के बीच दूरियों में कमी आई है।

3. परस्पर सहयोग आज के समय की माँग है।

4. विभिन्न राष्ट्रों मे साधनों की दृष्टि से विविधता पाई जाती है।

5. विश्व स्तर पर मानवीय मूल्यों का तेजी से हास हो रहा है।

6. अनेक विश्वस्तरीय समस्याएँ सामने आ रही हैं।

7. प्रत्येक राष्ट्र विकास करना चाहता है और इसके लिए वह विकसित राष्ट्रों के सहयोग की अपेक्षा करता है।

 

8. वैश्वीकरण की प्रक्रिया तेजी से बढ़ रही है।

9. संयुक्त राष्ट्र संघ (UNO), राष्ट्र मण्डल (Common wealth), यूनेस्को (UNESCO) तथा विश्व स्वास्थ्य संगठन (World Health Organisation) जैसी अनेक अन्तर्राष्ट्रीय संस्थाएं परस्पर सहयोग को बढ़ावा दे रही हैं। इन संस्थाओं की सफलता इसी में है कि सभी राष्ट्र विभिन्न क्षत्रों में परस्पर सहयोग करें।


सहयोग के लाभ
(ADVANTAGES OF COLLABORATION)


इसके निम्नलिखित लाभ होंगे :-


1. अल्पविकसित व अविकसित राष्ट्र विकास की ओर बढ़ेंगे (Undeveloped and Developing Countries will move towards Development) - विकसित राष्ट्र जब भौतिक, आर्थिक व मानवीय संसाधनों के द्वारा अल्पविकसित व अविकसित राष्ट्रों की मदद करेंगे तो उन्हें विकास की दिशा में आगे बढ़ने में मदद मिलेगी।


2. मानवीय मूल्यों का विकास करना (Human Values will be Developed) - जब विभिन्न व्यक्ति, समूह, समुदाय या राष्ट्र परस्पर सहयोग से कार्य करेंगे तो परस्पर प्रेम, सहयोग, सहिष्णुता तथा त्याग जैसे मानवीय मूल्य स्वतः ही विकसित हो जाएँगे।

 

3. अन्तर्राष्ट्रीय सदभावना व राष्ट्रीय एकता की भावना का विकास (Development of International Understanding and National Integration) - आज राष्ट्रीय एकता एवं अन्तर्राष्ट्रीय सद्भावना की बहुत अधिक आवश्यकता है। जब देश के अन्दर विभिन्न वर्गो, धरमो व जातियों के लोग परस्पर सहयोग से कार्य करेंगे तो राष्ट्रीय एकता की भावना को बल मिलेगा। इसी प्रकार अन्तर्राष्ट्रीय स्तर पर विश्व के विभिन्न देशों में सहयोग विश्व परिवार की भावना का विकास करने में सहायक सिद्ध होगा।


4. राष्ट्रीय व अन्तर्राष्ट्रीय समस्याओं के समाधान में सहायक (Helpful in Solving National and International Problems) - इस समय राष्ट्र के समक्ष अनेक चुनौतियाँ हैं। जातीयता, प्रान्तीयता तथा धार्मिक असहिष्णुता की भावनाएँ आजादी के इतने वर्षों बाद भी मौजूद हैं। कन्या भ्रूण हत्या जैसी समस्या एक बड़ी चुनौती प्रस्तुत कर रही है। इन सबका समाधान केवल संवैधानिक प्रावधानों तथा कानून द्वारा सम्भव नहीं है। इसके लिए सरकारी, गैर-सरकारी संस्थाओं तथा सामान्य जनता का सहयोग अपेक्षित होता है।

इसी प्रकार आतंकवाद तथा पर्यावरण प्रदूषण जैंसी समस्याएँ विश्वस्तरीय समस्याँ हैं इनका समाधान भी विभिन्न राष्ट्रों के परस्पर सहयोग से ही संभव हो सकता है।


5. विज्ञान व तकनीकी के विकास में सहायक (Helpful in Development of Science and Technology) - आज विश्व में विज्ञान व तकनीकी विकास ने अत्यधिक परिवर्तन ला दिया हैं। इन क्षेत्रों में विकास की प्रक्रिया अभी जारी है। यदि विभिन्न राष्ट्र इस क्षेत्र में परस्पर सहयोग से कार्य करें तो विश्व विज्ञान व तकनीकी के क्षेत्र में सशक्त हो जाएगा।


6. शक्षिक सशक्तीकरण में सहायक (Helpful in Educational Empowerment) - शिक्षक सहयोग विभिन्न राष्ट्रों को शैक्षिक दृष्टि से सशक्त बनाने में मदद करता है। परस्पर सहयोग से नवीनतम जानकारियाँ प्राप्त होती हैं। बच्चों में सृजनात्मकता को बढ़ावा मिलता है। शिक्षा के क्षेत्र में नवीनतम तकनीकी के प्रयोग को बल मिलता है। इन सबसे शैक्षिक सशक्तीकरण होता है ।

 

7. सांस्कृतिक विकास में सहायक (Helpful in Culture Development) - सहयोग की स्थिति में देश/विश्व के विभिन्न भागों में रहने वाले लोगों को एक-दूसरे के सम्पर्क में आने का अवसर मिलता है जब विभिन्न संस्कृतियों के लोग परस्पर सहयोग से काम करते हैं तो उनमें सांस्कृतिक आदान-प्रदान भी होता है।


दूसरों की संस्कृति की अच्छी बातों को जब हम ग्रहण करते हैं तो इससे सांस्कृतिक विकास होता है।


सहयोग के दोष (Disadvantages of Collaboration)


यों तो सहयोग एक लाभकारी प्रक्रिया है। पर कभी-कभी इसके कुछ दुष्प्रभाव भी सामने आते हैं। इसके कुछ मुख्य दोष इस प्रकार है :-


1. निर्णय लेने में देरी (Delay in Taking Decisions) - जब हम किसी विषय में निर्णय लेने में दूसरों के सहयोग की अपेक्षा करते हैं तो कई बार उनके विचार प्राप्त होने में देरी होने से हमें निर्णय लेने में कठिनाई होती है जिससे हमें अपनी योजनाओं को क्रियान्वित करने में विलम्ब होता है।


2. सहयोगी का प्रभुत्व (Dominance of the Collaborator) - कई बार जब सहयोगी अधिक समर्थ व सशक्त होता है तो वह सहयोग पाने वाले व्यक्ति पर हावी होने का प्रयास करता है। परिणाम यह होता है कि वह स्वतंत्रतापूर्वक कार्य करने में कठिनाई का अनुभव करता है।

 

3. सहयोग में गम्भीरता की कमी (Lack of Seriousness in Co-operation) - सहयोग एक बहुत महत्वपूर्ण प्रक्रिया है। सहयोग पाने वाला कई महत्वपूर्ण मामलों में अपने सहयोगी पर निर्भर हो सकता है। लेकिन कई बार सहयोगी सहयोग के प्रति गम्भीर नहीं होता है। परिणामस्वरूप संबंधित व्यक्ति/समूह/राष्ट्र को अनैक मुश्किलों का सामना करना पड़ता है।


सहयोग का अर्थ किसी लक्ष्य की प्राप्ति में परस्पर सहायता/सहयोग वैश्वीकरण व प्रजातन्त्र की मुख्य आवश्यकता है। सहयोग दो व्यक्तियों, समूहों, राज्यों व राष्ट्रों में हो सकता है। यह आर्थिक, भौतिक व मानवीय संसाधनों के रूप में हो सकता है। यह शिक्षा, चिकित्सा, उद्योग, तकनीकी एवं विज्ञान व्यापार आदि विभिन्न क्षेत्रों में संभव हैं।


जहाँ तक शिक्षा का सम्बन्ध है प्रत्येक राष्ट्र इसके महत्त्व से अवगत है। इसलिए वह अपने नागरिकों की शिक्षा के लिए प्राथमिक, माध्यमिक एवं उच्च प्रत्येक स्तर पर अच्छी-से-अच्छी शैक्षिक सुविधाओं का प्रावधान करता है। अपने शैक्षिक कार्यक्रमों व योजनाओं को सफल बनाने के लिए समाज व अन्य राष्ट्रों के सहयोग की आवश्यकता होती है। जहाँ तक भारत का संबंध है यहाँ शिक्षा के क्षेत्र में सहयोग निम्न रूपों में दिखाई देता है

 

1. विद्यालय व समुदाय में सहयोग

2. अन्य राष्ट्रों के साथ सहयोग

3. सरकारी व गैर-सरकारी संस्थाओं में सहयोग


1. विद्यालय व समुदाय में सहयोग (Collaboration in School and Community) - भारत में विद्यालय एवं समुदाय के सहयोग के कारण ही शैक्षिक लक्ष्यों की प्राप्ति संभव हो पा रही है। समुदाय विद्यालय खोलने, विद्यालय भवन उपलब्ध करवाने, चिकित्सकीय सुविधाएँ उपलब्ध करवाने तथा विद्यालय के विद्यार्थियों को विभिन्न क्षेत्रों से संबंधित महत्वपूर्ण जानकारियाँ देने के लिए विशेषज्ञ उपलब्ध करवाता है। समुदाय में उपलब्ध विभिन्न डाकघर, बैंक आदि विभिन्न जन सेवा संस्थान तथा कारखाने विद्यार्थियों की शिक्षा को जीवन के साथ जोड़ने व उसे व्यावहारिक बनाने में मदद करते हैं। इसी प्रकार विद्यालय भी विभिन्न अवसरों पर समुदाय के लिए अपनी सेवाएँ उपलब्थ कराते हैं। राष्ट्रीय समारोहों में विद्यार्थी स्वयंसेवी कार्यकर्ता के रूप में महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं। समाजिक समस्याओं के प्रति जागरूकता पैदा करने में शिक्षा संस्थाएँ महत्वपूर्ण भूमिका निभाती हैं। पोलियो व एडस के सन्दर्भ में इनके द्वारा निकाली जाने वाली जन जागरूकता रैलियाँ इसका प्रमाण हैं। विद्यालय व समुदाय आर्थिक मामलों में भी परस्पर सहयोग करते हैं।


2. अन्य राष्ट्रों के साथ सहयोग (Collaboration with Ouher Countries) - वैश्वीकरण के कारण अंतरराष्ट्रीय स्तर पर शिक्षा के सार्वभौमिकरण के प्रयास किये जा रहे हैं । विश्व बैंक द्वारा 21 शताब्दी के आरम्भ में विश्व बैंक ने 18 ऐसे देशों का चयन किया जहाँ आर्थिक साधनों की कमी के कारण शिक्षा के सार्वभौमिकरण के लक्ष्य की प्राप्ति सम्भव नहीं हो पा रही थी। भारत भी इनमें से एक देश था। इन देशों के लिए अनुदान राशि एकत्रित करने की योजना बनाई गई । इस प्रकार अंतरराष्ट्रीय सहयोग शैक्षिक योजनाओं व लक्ष्यों को प्राप्त करने में मदद करता है। शिक्षा के क्षेत्र में सहयोग के लिए अंतरराष्ट्रीय शिक्षा आयोग ने महत्वपूर्ण सिफारिशें की है।

 

3. सरकारी व गैर-सरकारी संस्थाओं में सहयोग (Collaboration between Government and Non-Government Institutions) - भारत में सरकारी व गैर-सरकारी संस्थाओं में भी सहयोग अपेक्षित हैं। शिक्षा के क्षेत्र में बनाई गई विभिन्न योजनाओं की सफलता गैर-सरकारी संस्थाओं व जनसामान्य के सहयोग पर निर्भर रहती है। उदाहरण के लिए यहाँ शिक्षा को मौलिक अधिकार का दर्जा दे दिया गया है। यह प्रयास तभी सफल होगा जब लोगों में इसके प्रति जारूकता पैदा हो। इस कार्य में गैर-सरकारी संस्थाओं को सहयोग अपेक्षित है। अनेक शैक्षिक योजनाओं की असफलता का कारण लोगों का उनके बारे में जागरूक न होना है। गैर-सरकारी एवं स्वयं सेवी संस्थाएँ इस कार्य में सरकार का सहयोग करती हैं।


सहभागिता/हिस्सेदारी क्या है ?
( What is PARTNERSHIP ?)


वैश्वीकरण के इस दौर में अनेक प्रत्यय अस्तित्व में आ रहे हैं और व्यक्ति एवं राष्ट्र के जीवन के प्रत्येक पक्ष को प्रभावित कर रहे हैं। ऐसा ही एक प्रत्यय हैं - हिस्सेदारी/सहभागिता (Partnership) यह एक ऐसा शब्द है जिसका प्रयोग हम सामान्यतः करते रहते हैं। हम सामान्यतः लोगों को यह कहते हुए सुनते हैं कि उन्होंने अपने मित्र या किसी संबंधी के साथ हिस्सेदारी (Partnership) में कोई व्यपार शुरू किया है। ऐसा करते समय दोनों पक्ष कुछ शर्तों पर लिखित रूप में सहमति जताते है। उदाहरण के लिए कौन व्यक्ति कितने प्रतिशत पूँजी का निवेश करेगा, लाभ में किसे कितने प्रतिशत मिलेगा तथा हानि की स्थिति का सामना कैसे किया जाएगा। यह हिस्सेदारी या सहभागिता है।


हिस्सेदारी या सहभागिता की विशेषताएँ (Characteristics of Partnership)

 

1. हिस्सेदारी में दो या अधिक पक्ष परस्पर सहमति के साथ कार्य करने का निश्चय करते है।

2. सभी पक्ष समान लक्ष्यों की प्राप्ति के लिए हिस्सेदारी करते हैं।

3. हिस्सेदारी दो प्रकार की हो सकती है


(i)  औपचारिक हिस्सेदारी (Formal Partnership)

(ii) अनौपचारिक हिंस्सेदारी (informal Partnership) 


औपचारिक हिस्सेदारी में लिखित रूप में शर्तें निर्धारित की जाती हैं। ये नियम/शर्ते परस्पर सहमति से तय की जाती हैं। जब यह शर्ते या नियम मौखिक ही होती हैं तो वह अनौपचारिक हिस्सेदारी कहलाती हैं।


4. हिस्सेदारी का क्षेत्र बहुत व्यापक है। यह शिक्षा, व्यापार तथा खेलकूद आदि किसी भी क्षेत्र में हो सकती है।

5. हिस्सेदारी दो व्यक्तियों, समूहों, राज्यों या राष्ट्रों के बीच भी हो सकती है।

6. इसका उद्देश्य विभिन्न पक्षों के पास उपलब्ध भौतिक, मानवीय तथा वित्तीय साधनों का अधिकतम लाभ उठाते हुए एक समान लक्ष्य को प्राप्त करना है।

7. भागीदारी में कार्य करने के इच्छुक प्रत्येक पक्ष को अपने भागीदार/भागीदारों का चयन करने की स्वतंत्रता होती हैं।।

8. तालमेल का अभाव होने की स्थिति में इसे तोड़ा भी जा सकता है। लेकिन इसके लिए सम्बद्ध पक्षो का सहमति आवश्यक है। इस प्रकार कोई भी साझेदारी स्थायी नहों होती है।

9. साझेदारी का आधार है सच्चाई, ईमानदारी, आपसी विश्वास तथा प्रतिबद्धता ।


हिस्सेदारी के लाभ (Advantages of Partnership)

 

इसके निम्नलिखित लाभ है:-


1. सीमित साधनों का सदुपयोग होता है और उनसे अधिकतम लाभ प्राप्त करने की सम्भावना रहती है।

2. मानवीय सम्बन्धो में सुधार होता है।

3. परस्पर सहयोग से कार्य करने की प्रवृत्ति का विकास होता है।

4. आपसी विश्वास, समझ तथा सच्चाई व ईमानदारी जैसे गुणों के विकास की सम्भावना होती है।

5. मिल-जुलकर कार्य करने से लक्ष्य प्राप्ति आसान हो जाती है।

6. इससे विभिन्न व्यक्तियों व राष्ट्रों में प्रतियोगतिता की भावना का विकास होता है।

7. रोजगार के अवसर बढ़ते हैं। अनेक विदेशी कंपनियां भारतीयों के साथ मिलकर कार्य कर रही हैं। इससे रोजगार मिलने से लोगों के जीवन के स्तर में भी सुधार होता है।


हिस्सेदारी के दोष (Demerits of Partnership)

 

1. इससे आपसी मतभेदों को बढ़ावा मिलता है।

2. नियोजन, कार्यान्वयन तथा प्रबंधन आदि मामलों में असहमति होने की स्थिति में भागीदारी के बीच में ही टूटने की सम्भावना बनी रहती है जिसका प्रभाव सभी सम्बद्ध पक्षों पर पड़ता है।

3. अनेक बार हिस्सेदारी असफल होकर कानूनी दाँव-पेंच में फस जाती है जिससे समय, धन व साधनों का अपव्यय होता है तथा सम्बद्ध पक्षों को मानसिक तनाव का सामना करना पड़ता है।


इन कमियों दोषों के बावजूद इसके महत्व से इन्कार नहीं किया जा सकता। वास्तविकता तो यह हैं कि हिस्सेदारी आज के समाज की मुख्य आवश्यकता है। आज विदेशी कम्पनियों की सहभागिता के कारण ही भारत तेजी से प्रगति कर रहा हैं।

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