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Analytic and Synthetic method in Hindi| Analytic and synthetic method of Teaching Mathematics

Analytic and Synthetic method in Hindi


विश्लेषण विधि
(ANALYTIC METHOD)


विश्लेषण विधि से हमारा तात्पर्य है कि किसी भी समस्या की तह तक पहुँचने के लिये तथा समस्या का हल सुविधापूर्वक खोजने के लिये उसे छोट-छोटे भागों में विभिक्त किया जाये और इस तरह अज्ञात की रहस्य खोजते-खोजते ज्ञात तक पहुँचने का प्रयास करते हैं। समस्या में जो कुछ ज्ञात करना होता है। अथवा सिद्ध करना होता है उससे आरम्भ करते हैं तथा यह सिद्ध करने अथवा ज्ञात करने के लिये हमें पहले क्या ज्ञात या सिद्ध कर लेना चाहिए और इस तरह पता लगाते-लगाते जो कुछ दिया होता है उस तक पहुँच जाते हैं। इस प्रकार यह स्पष्ट है कि विश्लेषण विधि में किसी तथ्य या समस्या को टुकड़ों में विभाजित कर दिया जाता है। ये टुकड़े या खण्ड इस प्रकार किये जाते हैं कि उनको मिलाने पर वही विषय या समस्या अपने स्वरूप में लौट आती है।


इस प्रकार रेखागणित, अंकगणित, बीजगणित की समस्याओं का हल खोजने के लिये विश्लेषण विधि का प्रयोग किया जाता है। इस विधि का प्रयोग निम्नलिखित बातों के कहने हेतु किया जाता है


1. अंकगणित में किसी-न-किसी समस्या को हल करना होता है।

2. जब किसी प्रमेय को सिद्ध करना होता है।

3. जब रेखागणित में किसी रचना का हल ढूँढ़ा जाता है।

 

इस विधि में अज्ञात से ज्ञात की ओर चलते हैं। इस प्रकार छात्र स्वयं इस बात की खोज करता है। कि किसी समस्या को हल करने के लिये कौन-कौन-सी बातें ज्ञात होनी चाहिए। विश्लेषण वह विधि है जिसके द्वारा छात्र समस्या का हल ज्ञात करते हैं तथा इस बात की खोज करते हैं कि किसी विशेष पद के भूल गए हैं।


विशलेषण विधि के गुण ( Merits of Analytic Method )


1. यह सीखने की एक तार्किक एवं वैज्ञानिक विधि है। विश्व की समस्त घटनाओं एवं क्रियाओं के पीछे छिपे कारणों का इस विधि द्वारा पता लगाया जा सकता है। समस्त वैज्ञानिक खोजें इसी विधि से हुई हैं।


2. इस विधि में छात्र अधिक क्रियाशील रहते हैं। चूँकि इस विधि में से कैसे वाक्यों का उत्तर खोजते हैं। अतः इससे छात्रों की कल्पना, चिन्तन, तर्क, निर्णय आदि मानसिक शक्तियों को विकास होता है।


3. इस विधि द्वारा छात्र खोज की विधि में प्रशिक्षण प्राप्त करते हैं और जीवन से सम्बन्धित गणित की समस्याओ को हल करने का तरीका सीखते हैं।


4. इस विधि से कार्य करने से छात्रो मे मौलिकता आती है।


5. इस विधि द्वारा सीखा ज्ञान स्थायी होता है क्योंकि इस विधि में छात्र स्वयं अपने प्रयास से ज्ञानार्जन करने का अवसर प्राप्त करते हैं।


विशलेषण विधि के दोष ( Demerits of Analytic Method )

 

1. विश्लेषण स्वयं एक कठिन प्रक्रिया है इसलिये छोटे बच्चों को अधिक सफलता प्राप्त नहीं है।

2. इस विधि में शक्ति एवं समय दोनों ही अधिक लगते हैं। प्रायः बच्चे उब जाते हैं।

3. इस विधि द्वारा सभी विषयों का शिक्षण सम्भव नहीं है।

4. यह एक अमनोवैज्ञानिक विधि है।

5. यह एक अपूर्ण विधि है।


संश्लेषण विधि
(SYNTHETIC METHOD)


विशलेषण विधि में समस्या को जीवित खण्डों में तोड़कर उसके हल की विधि खोजी जाती है, परंतु संश्लेषण विधि में समस्या के इन जीवित खण्डों को मिलाकर उसका हल प्रस्तुत किया जाता है। इस विधि में ज्ञात से अज्ञात की ओर चला जाता है इसलिए यह शिक्षण की मनोवैज्ञानिक विधि है।

संशलेषण विधि के पद

सामान्यतः संश्लेषण विधि के कोई निश्चित पद नहीं हैं, परन्तु इसकी कार्यप्रणाली समझने के निम्न तीन पद हैं - 


1. समस्या के आधार का ज्ञान - कोई भी समस्या अपने में समस्या नहीं होती, उसका कोई आधार होता है, उसकी कोई पृष्ठभूमि होती है। संश्लेषण विधि में अध्यापक सर्वप्रथम छात्रों को यह बताता है कि समस्या की आधार पृष्ठभूमि क्या है ?


2. समस्या का हल - यह संश्लेषण विधि का अन्तिम पद है। यदि अध्यापक विश्लेषण के बाद संश्लेषण करता है तो वह समस्या का हल छात्रों के सहयोग से करता है और यदि वह सीधे संश्लेषण विधि द्वारा शिक्षण करता है तो हर समस्या का हल स्वयं प्रस्तुत करना पड़ता है।


3. समस्या का ज्ञान - इस पद पर अध्यापक छात्रों को उस समस्या का स्पष्ट ज्ञान कराता है।


संश्लेषण विधि के गुण ( Merits of Synthetic Method )

1. यह शिक्षण की एक मनोवैज्ञानिक विधि है।

2: इस विधि में समय और शक्ति दोनों की बचत होती है।

3. चूँकि इसमें सोचने-समझने की अधिक आवश्यकता नहीं पड़ती, अतः छोटे और कमजोर छात्र भी इससे लाभ उठा सकते हैं।

4. इस विधि में छात्रों को वास्तविक समस्याओं को करने का अवसर प्राप्त होता है। 


संशलेषण विधि के दोष ( Demerits of Synthetic Method )


1. इस विधि में क्रियाओं के पदों का हमारे पास कोई कारण नहीं होता है। तर्क के अभाव में छात्रों को रटने का सहारा लेना पड़ता है।


2. यह विधि रटने की क्रिया पर निर्भर होने के कारण इसमें यदि किसी ज्ञान का विस्मरण हो जाये तो उसे पुनः खोजा नहीं जा सकता।

 

3. इस विधि में छात्रों को सोचने-समझने का अवसर प्राप्त नहीं होता है। अतः वे निष्क्रिय रहते हैं और इसलिये इस विधि में सही अर्थो में सीखना नहीं हो पाता।


4. इस विधि में खोजे हुए ज्ञान को खोजा जाता है, अतः किसी नवीन ज्ञान की खोज नहीं हो पाती।

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