Principles of Health Education in Hindi
स्वास्थ्य शिक्षा के सिद्धांत
स्वास्थ्य शिक्षा वर्तमान समय की अत्यंत आवश्यकता है। शिक्षण और सीखने के माध्यम से ही स्वास्थ्य शिक्षा को सभी लोगों के लिए सुलभ बनाया जा सकता है।
मनोवैज्ञानिकों ने माना है कि सीखने और स्मृति की प्रक्रिया के माध्यम से स्वास्थ्य शिक्षा को एक नई दिशा दी जा सकती है। प्रत्येक व्यक्ति अपने जीवनकाल में कुछ न कुछ सीखता है और जो सीखा है उसके आधार पर उसका जीवन-व्यवहार संचालित होता है।
प्रशिक्षण शिक्षक और छात्र के बीच एक सतत प्रक्रिया है । जब तक सीखने वाला तैयार नहीं होता, तब तक उसे कुछ भी शिक्षाप्रद और अनुकरणीय नहीं लगता।
सीखने-सिखाने की यह प्रक्रिया केवल स्कूल तक ही सीमित नहीं है, बल्कि यह प्रयास समाज और परिवार भी करता है।
स्वास्थ्य शिक्षा कार्यक्रम के तहत स्वास्थ्य के प्रति जागरूकता पैदा कर समुदाय को जागृत किया जाता है ताकि आम जनता को समस्याओं से निजात मिल सके।
इसके तहत स्वयं को स्वास्थ्य से बचा सकते हैं कुछ सिद्धांत शिक्षाविदों द्वारा बताए गए जो इस प्रकार हैं-
1. रुचि-
मनोवैज्ञानिकों का मानना है कि अधिकतर लोग उन बातों को गंभीरता से लेते हैं जिनमें उनकी रुचि नहीं होती। यही कारण है कि स्वास्थ्य के प्रति जागरूकता का अभाव है।
स्वास्थ्य शिक्षा प्रदान करने वाले अधिकारियों या कर्मचारियों का यह कर्तव्य है कि वे सर्वप्रथम जनता में स्वास्थ्य कार्यक्रमों के प्रति रुचि उत्पन्न करें।
पता करें कि स्वास्थ्य के संबंध में जनता की क्या अपेक्षाएँ हैं, इसके बाद नीतियाँ और कार्यक्रम बनाने चाहिए ताकि स्वास्थ्य शिक्षा कार्यक्रम सफल हो सके।
आम आदमी के हित के बिना किया गया कोई भी कार्य सफल नहीं हो सकता है, इसलिए उनकी रुचि जगाना आवश्यक है।
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2. सहभागिता-
सीखने की प्रक्रिया तभी प्रभावी होती है जब व्यक्ति सक्रिय हो और किसी कार्य के लिए तैयार हो।
स्वास्थ्य शिक्षा कार्यक्रम में समूह चर्चा, विशेषज्ञ चर्चा, कार्यशाला आदि कार्यक्रमों का आयोजन कर स्वास्थ्य शिक्षा को सफल बनाने का प्रयास किया जाता है।
इन कार्यक्रमों में जनता की अधिक से अधिक भागीदारी इस बात का द्योतक है कि आम जनता स्वास्थ्य के प्रति कितनी जागरूक है। यह जागरूकता स्वास्थ्य शिक्षा कार्यक्रमों को सफलता देती है।
3. संचार-
शिक्षा को एक व्यक्ति से दूसरे व्यक्ति तक आसानी से पहुँचाने के लिए भाषा महत्वपूर्ण है।
अधिकांश लोग जिनका शिक्षा स्तर या तो बहुत कम या मध्यम स्तर का है, स्वास्थ्य शिक्षा कार्यक्रम में शामिल हैं। इसलिए ऐसे लोगों को प्रशिक्षण देते समय इस बात का विशेष ध्यान रखना चाहिए कि भाषा शैली उन लोगों के स्तर की हो ताकि समझने में कठिनाई न हो।
यदि भाषा शैली इन लोगों से उच्च स्तर की होगी तो वे स्वास्थ्य कार्यक्रमों का लाभ नहीं उठा सकेंगे। ऐसे कार्यक्रम की सफलता उचित संचार से ही संभव है।
4. प्रेरणा-
हर कोई कुछ न कुछ सीखना चाहता है। फर्क सिर्फ इतना है कि किसी में यह इच्छा जाग्रत रहती है और किसी में नहीं। जिन लोगों में सीखने की सुप्त इच्छा होती है उन्हें प्रेरणा के द्वारा प्रेरित करना पड़ता है।
प्रेरणा भी दो प्रकार की होती है।
1. प्राथमिक, जैसे- भूख, सेक्स, जीने की इच्छा,
2. माध्यमिक, जैसे- प्रतियोगिता, पुरस्कार, प्रशंसा, दंड आदि।
प्राथमिक प्रेरणाओं को जगाने के लिए अधिक प्रयास की आवश्यकता नहीं होती है। जबकि द्वितीयक अभिप्रेरणाओं के लिए विशेष विधियों का सहारा लेना पड़ता है।
गुटखा खाने वाले को यदि 'यह बुरी चीज है, इसे नहीं खाना चाहिए' कहकर रोका जाए तो उस पर कोई प्रभाव नहीं पड़ता। लेकिन जब आप उसे गुटखा खाने वाले लोगों को हुई बीमारियों के बारे में विस्तार से बताएंगे और उसी तकदीर के बारे में बताएंगे तो इसका सीधा असर उस पर पड़ेगा और वह अपने स्वास्थ्य के प्रति सचेत हो जाएगा।
5. बौद्धिक स्तर-
शिक्षा से बहुत सी जानकारी प्राप्त होती है। लेकिन देने से पहले, प्राप्त करने वाले समूह के बौद्धिक स्तर को स्पष्ट करना आवश्यक है।
शिक्षक के लिए यह जानना आवश्यक है कि उसके द्वारा दी जा रही शिक्षा किस रूप में, किस स्तर तक शिक्षण सामग्री प्राप्त करने में सक्षम है।
यदि संबंधित व्यक्ति पढ़ाए गए को ग्रहण करने में असमर्थ है, तो उसे सिखाने का प्रयास व्यर्थ होगा।
अतः स्वास्थ्य शिक्षा कार्यक्रम प्रारम्भ करने से पूर्व लक्षित लोगों के बौद्धिक स्तर को जानना आवश्यक है ताकि उनके स्तर के अनुसार उन्हें ज्ञान प्रदान किया जा सके।
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